Monday 9 August 2021

विदुषी सवैया शिल्प विधान और उदाहरण

आ. गुरुवर संजय कौशिक विज्ञात जी,

के मार्गदर्शन में नीतू ठाकुर 'विदुषी' जी द्वारा आविष्कृत-नवीन छंद-

उपजाति विदुषी सवैया

२२वर्ण, १०,१२ पर यति
७ रगण + गुरु
२१२ २१२ २१२ २,
१२ २१२ २१२ २१२ २

चित्तौड़ का घेराव

वीर चित्तौड़ का दुर्ग छोड़े,
चले अश्व मेवाड़ के वन्य जाते।
शाह सेना लगाती पता थी,
गए सैनिको  संग  राणा बताते।
खोजते वीर को खो रहे थे,
स्वयं सैन्य शाही मरे लौट आते।
जंगलों में छिपा दुर्ग था वो,
पता शत्रु कैसे कभी खोज पाते।

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*साधना*
*विधा - विदुषी सवैया*
212 212 212 2, 12 212 212 212 2
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साधना से मिली दिव्य काया, अकर्मण्यता में नहीं डूब जाना ।
यक्ष गंधर्व या देवता हों, सभी चाहते मानवी देह पाना ।
देह की शुद्धता पे कभी भी, नहीं छद्म का मैल कोई लगाना ।
हर्ष का पुष्प "साँची" खिला के, सुहानी धरा चाहती मुस्कुराना ।।67।।

साधना से जगा शक्ति प्रज्ञा, बनो सत्य भाषी तजो छद्म सारे ।
प्रेम से पूर्ण व्यवहार ही तो, सभी प्राणियों के बने हैं सहारे ।
कर्म में ही भरो मर्म ऐसा, सदा विश्व ये नाम तेरा उचारे ।
धार सद्बुद्धि श्रृंगार "साँची", क्षमा वान ज्ञानी स्वयं को सँवारे ।।68।।

      *इन्द्राणी साहू"साँची"*
         भाटापारा (छत्तीसगढ़)     

               
खोज हारी थकी शाह सेना,
गई लौट  के दुर्ग  चित्तौड़ आए।
शाह पूछे उन्हें घूर आँखे,
नही ढूँढ  राणा  सके हैं  बताए।
देश भू को बचाने छिपे जो,
वही धीर  राणा बचे भी  बचाए।
धर्म रक्षा हितैषी रहे वे,
महा वीर  राणा  उदै सिंह  छाए।
         👀🌼👀

*बाबू लाल शर्मा,बौहरा,'विज्ञ'*
*सिकन्दरा, दौसा, राजस्थान*

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