Sunday 30 May 2021

विज्ञ सवैया छंद विधान और उदाहरण


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~~~~~~~~~~_बाबूलालशर्मा,विज्ञ_

.                       _श्रीगणेशाय:नम:_

.               *विज्ञ सवैया*

आ. गुरुदेव संजय कौशिक विज्ञात जी

के मार्गदर्शन में आज एक नवीन छंद का 

प्राकट्य हुआ है - जिसे "विज्ञ सवैया" 

नाम दिया गया है।

विज्ञ सवैया वर्णिक है,

*विज्ञ सवैया विधान:--* 

२३  वर्ण प्रति चरण होंगे।

१२,११ वर्ण पर यति अनिवार्य है

४ चरण का एक सवैया होगा।

चारों चरण  समतुकांत हो।

मापनी:- सगण × ७ + गुरु + गुरु

सगण सगण सगण सगण,

सगण सगण सगण गुरु गुरु

११२  ११२  ११२  ११२,

११२   ११२  ११२   २  २ 


.     🦢  *विरहा*  🦢 

.              ••••••

पिक बोल सुने विरहा मन ने,

मन मोर शरीर सखी हारी।

रस रंग बसंत चढे तन में,

तब सोच रही मन से नारी।

वन मोर नचे तितली सब ही,

भँवरे फिरते कब से भारी।

पिय सावन आकर लौट गए,

तबसे न मिली उनसे प्यारी।

.              •••••••

भँवरे रस चाह रखे तितली, 

मँडरा कर वे रस को पीने।

पिक कूजत पीव मिले वन में, 

वन मोर धरा रस को छीने।

यह रंग बसंत यही अब है, 

खग लौट रहे घर को झीने।

मम कंत विदेश बसे सजनी,

प्रिय पीव मिले मन को जीने।

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...✍©

बाबू लाल शर्मा, बौहरा *विज्ञ*

सिकन्दरा, दौसा, राजस्थान

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 आज मंच पर आए दो नए छंद विधान 

आदरणीय बाबूलाल शर्मा बौहरा विज्ञ साहेब जी और नीतू ठाकुर विदुषी जी के नूतन अविष्कार पर मेरा प्रयास ..... 




*विज्ञ सवैया विधान:--* 

२१  वर्ण प्रति चरण होंगे।

१२,११ वर्ण पर यति अनिवार्य है

४ चरण का एक सवैया होगा।

चारों चरण  समतुकांत हो।

मापनी:-

सगण सगण सगण सगण सगण सगण सगण गुरु गुरु

११२  ११२  ११२  ११२,   ११२  ११२  ११२ २२

*विज्ञ सवैया*

*क्षण खण्डित सा दिखता वह तो, जब भी प्रिय भाव सजा पाया।*

*फिर आह कहीं निकली हिय से, नित कष्ट सहे तन जो छाया।*

*हिय एक रहे हरि आनन यूँ, जप नित्य तभी जपना भाया।*

*तब भूल वही करता जन ये, स्मृति के वश आज  ठगे माया।*


*विदुषी सवैया*

22 वर्ण प्रति पंक्ति 

12, 11 की यति अनिवार्य है।

विदुषी सवैया में 4 यति सहित कुल 8 चरण होंगे।

सम चरणों के तुकांत समान्त होंगे।

वाचिक रूप भी मान्य होगा। 


मापनी ~ 

रगण रगण रगण रगण रगण रगण रगण गुरु

212 212 212 2, 12 212 212 212 2


*विदुषी सवैया*

भीष्म को देखके लाल आँखे, वहाँ और है क्रुद्ध देखो शिखण्डी।

पूर्व में एक अम्बा रही थी, वही युद्ध में है बनी आज चण्डी।

पार्थ संगी शिखण्डी खड़े है, वहाँ कृष्ण भी एक सच्चे त्रिदण्डी।

अंजनी पुत्र के हाथ में थी, पताका वही जीत की श्रेष्ठ झण्डी।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

Thursday 6 May 2021

पूजा छंद पर बाबूलाल शर्मा बौहरा, विज्ञ जी की रचना


 

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~~~~~~~~~~~~~_बाबूलालशर्मा,विज्ञ_
श्री संजय कौशिक विज्ञातजी प्रदत्त-


.     🌼  *पूजा छंद*  🌼
मापनी- १२२ १२२ २२, २२१ २२२
मापनी का वाचिक रूप मान्य होगा


.🦢  *कन्हैया तुम्ही लीलाधर*  🦢
बजाते  मुरलिया कान्हा, राधा  बुलाने  को।
चली राधिका गोरी भी, हरि को रिँझाने को।
परस्पर मनो भावों  से, मन प्रीति पलती है।
युगों से यही मानस में, शुभ रीति चलती है।

करे पूतना का वध वे, हरि कृष्ण बालक थे।
उठाए सहज वे पर्वत, जन कृष्ण पालक थे।
कहानी  भ्रमर  ऊधो  की, माया कन्हाई की।
सगुण  निर्गुणी  बाते सब, बात दृढ़ताई  की।

रचा कर महाभारत  रण, हरि  सारथी  बनते।
सुना कर गहन गीता तब, भ्रम पार्थ का हरते।
पितामह सहित सब योद्धा, रण बीच मरवाए।
सखी द्रोपदी पांडव सुत, तब राज्य दिलवाए।

कन्हैया तुम्ही  लीलाधर, जग  को नचाते हो।
कहीं नाश कर देते हो, फिर आस जगाते हो।
बची हैं सुखद  आशाएँ, विश्वास प्रभु तुम से।
सुदर्शन लिए आजाओ,जग को बचा तम से।
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....✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा,विज्ञ
सिकन्दरा, दौसा, राजस्थान

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दूसरी रचना
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~~~~~~~~~~~~_बाबूलालशर्मा,विज्ञ_
श्री संजय कौशिक विज्ञातजी प्रदत्त-


. *पूजा छंद*
मापनी- १२२ १२२ २२, २२१ २२२
वर्णिक-मापनी का वाचिक रूप मान्य है


.  🦚 *घर द्वार* 🦚
रहें सर्वदा  प्रिय साथी, हम तुम सहारे बन।
करें कामना  दोनों हम, अम्बर  सितारे मन।
बहेगी सरित पावनतम, उजले हिमालय से।
करें वंदना दोनों मिल, मन के शिवालय से।

हमारी सतत सेवा से, घर द्वार  मन्दिर हो।
रहेंगे सुजन बन अपने, मनभाव सुन्दर हो।
सनेही  पिता माता को, भगवान मानें हम।
करें आरती उनकी तो, मन बात जाने हम।

सजाएँ सपन यादों के, सब पूर्ण भी करने।
रखे जो रहन सपने थे, फिर कर्ज वे भरने।
सुता को सहेजेंगे मिल, बहु  बेटियाँ  माने।
पराए सदन जो रमती, मन भाव  पहचाने।

निभे मित्रता मन से तो, मन छंद  नव रचने।
सुनाएँ सुगम सुर न्यारे, लय तालमय बजने।
चलेगी गृहस्थी गाड़ी, नव गीत रच कर मन।
बनेगी धरा सुखकारी, मनमीत मधुकर जन।
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बाबू लाल शर्मा,बौहरा,विज्ञ
सिकंदरा, दौसा, राजस्थान
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Wednesday 5 May 2021

विद्योत्तमा छंद पर आधारित सुशीला जोशी विद्योत्तमा जी की रचना


संजय कौशिक 'विज्ञात' जी द्वारा आविष्कृत 'विद्योत्तमा छंद' पर आधरित रचना

विद्योत्तमा छंद मापनी 

212  222, 222  212  21 ......... 


नफ़रतें करते हैं, हम खुद से भी अधिक आज।

वार सहते कितने, तुम समझो तो तनिक आज।।


भाव से जोड़े हिय, कविता उत्तम वही छंद।

पंक्ति चमकें नभ में, ज्यूँ तारों मध्य में चंद।।


पिंजरे तोड़े सब, ताकत रखता वही काव्य।

लेखनी दौड़ी अब, भावुक विद्योत्तमा भाव्य।।


कृष्ण राधा सी ये, पावन कविता लगे भाव।

और ये आस्था से, भरके तैरे नदी नाव।।


भक्ति गुरुवर की है, मेरे निखरे हुए छंद।

ज्ञान नौका चलती, बहती सी जो दिखे मंद।।


सुशीला जोशी 'विद्योत्तमा'

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दूसरी रचना


212 222, 222 212  21


कल्पना सी दिखती , कविता की साधना  मूक  ।

अब तलक भी खिल कर, करती है याचना चूक  ।।


रोज देखो होता , अपमानित अर्चना  थाल ।

हर समय झुकते है ,सज्जित से  राजसी भाल ।।


है समर्पित आपको, हुलसी सी  चाहना की रीत ।

जो हमेशा चाहे , चहकी सी सदा ही  प्रीत ।। 


दर्प की झूठी छवि ,जब भी उर में  पली जीत ।

हार बैठी अपना, सबकुछ ही जीत कर मीत ।।


कामना करते थे ,देख उनका हाल बेहाल ।

देखते जब उनको  , दिल पकड़े चाह की चाल ।।


सुशीला जोशी 'विद्योत्तमा'

Tuesday 4 May 2021

शांता छंद आधारित बाबूलाल शर्मा, बौहरा,विज्ञ जी की रचनाएँ

 

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~~~~~~~~~_बाबूलालशर्मा,विज्ञ_
श्री संजय कौशिक विज्ञात प्रदत्त-


.       🦢 *शांता छंद* 🦢
मापनी- १२२ १२२ २२ वाचिक


••• *विजन वात वह वातायन* •••
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कठिन पथ सुयश का साथी
सरल है क्षणिक सुख मिलना।
अगम दल कमल खुशियों के
सुगम नित सुमन का खिलना।

वहम वर सुखद जीवन का
व्यथित वह रहा कर मन को
मरण तय नियम प्राकृत का
दुखित नित रहा कर तन को।

व्यजन व्यंजना वर विमला
विजन वात वह वातायन।
चकित चक्षु चंचल चर चितवन
कलम कामिनी कविता मन।

परम पूज्य पावन पाहन
पलक पुण्य पारावर पल।
जलज जाल जंगल जीवन
जलद जीव जंगम जन जल।
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..  ✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा,विज्ञ
सिकन्दरा, दौसा, राजस्थान


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दूसरी रचना

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~~~~~~~~~_बाबूलालशर्मा,विज्ञ_
श्री संजय कौशिक विज्ञात प्रदत्त-


.      *...शांता छंद...*
मापनी- १२२ १२२ २२ वाचिक


•••• *दुखद पुरवाई* ••••
लगी है पवन अब सुलगी
धरा पर अगन बरसाती।
किसी को तपन ज्वर भारी
कहीं है दुखित तन छाती।

बही है दुखद पुरवाई,
विरह मन सहित यह पगली।
मिलन कब स्वजन से होना,
सुनेंगें कथा क्या अगली।

महामारियाँ सुनते थे,
अभी यह सहन की हमने।
बताते यही है औषध,
सजग रह यत्न कर अपने।

गुजारो कठिन पल साथी,
समर यह समझ कर भारी।
बहेगी सरित फिर पावन
सँभाले गगन छत धारी।
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.....✍©
बाबू लाल शर्मा बौहरा विज्ञ
सिकन्दरा, दौसा राजस्थान
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कुमकुम छंद आधारित बाबूलाल शर्मा बौहरा, विज्ञ जी की रचनाएँ

 

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~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
श्री संजय कौशिक विज्ञात प्रदत्त-


.          *कुमकुम छंद*
मापनी- २१२ २२२ प्रति चरण
वाचिक मात्रा भार मान्य
चार चरण, समचरण समतुकांत


*नवगीत - बिछुड़ते मीत गए*
.            °°°°°°°
गीत बन ढाल रहे
.स्वप्न दुख जीत गए
संग साथी कोविड
.       बिछुड़ते मीत गये

देश पर देश खबर
.  काग हँस चील रहे
.    मौन कोकिला हुई
.    काल डस ब्याल रहे
.       लाश लावारिश सब
मेघ कह शोक गये।
संग साथी कोविड़ 
बिछुड़ते मीत गए।।

शून्य  के पंथ चले
. रीत रो प्रीत पड़ी
.   मानवी भाव बना
.   संग है रोग कड़ी
.      दूरियाँ नष्ट हुई 
धूप ले प्रात गये।
संग साथी कोविड
बिछुड़ते मीत गए।।

खेत में धान पके
. ले किसान कब दवा
.    तीर विष धार लिए
.       मौन ले साध हवा
.      होंठ सूख कर स्वयं
अश्रु बह रीत गये।
संग साथी कोविड
बिछुड़ते मीत गए।।

देव ये स्वर्ग बसे
.   काल के दूत भ्रमे
.     रक्त बीज बन रहे
.       गंध विष घोल चले
.   नव विषाणु विरह के
खिल रहे क्लेश नये
संग साथी कोविड
बिछुड़ते मीत गए।।
.         °°°°°°°
✍©
बाबू लाल शर्मा *विज्ञ*
बौहरा भवन
सिकंदरा,दौसा, राजस्थान


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दूसरी रचना

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श्री संजय कौशिक विज्ञातजी प्रदत्त-


.     🦢 *कुमकुम छंद* 🦢
मापनी- २१२ २२२ प्रतिचरण वाचिक
चार चरण, समचरण समतुकांत


.🌼 *याद रह जाएगी* 🌼
.              ••••••••••
आस तुम पर बचती, साँस तुम से चलती।
जब चले तन राही, तुम रहो सच खिलती।

छंद तुम पर लिख दूँ, मेघ बन के सावन।
गीत  नित्य  रचेंगे, पीर   बन  के  पावन।

गीत तुम संग सजे, छंद सतरंग लिखे।
मौन मन चंग धरे, गीत  जब  ढंग रखे।

नींद  तय  आएगी, मौत  को  लाएगी।
छंद   शेष   रहेंगे, याद   रह   जाएगी।

अश्रु रोक कर रखें, धैर्य धार तुम रहो।
छंद गीत बन रहूँ, रीति प्रीति मय बहो।

जन्म और जब मिले, प्रेम रंग फिर जमें।
याद  तुम  आओगी, बात  याद कर हमें।
.               🦢🦢🦢
....✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा,विज्ञ
सिकंदरा, दौसा, राजस्थान
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