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~~~~~~~~~~_बाबूलालशर्मा,विज्ञ_
. _श्रीगणेशाय:नम:_
. *विज्ञ सवैया*
आ. गुरुदेव संजय कौशिक विज्ञात जी
के मार्गदर्शन में आज एक नवीन छंद का
प्राकट्य हुआ है - जिसे "विज्ञ सवैया"
नाम दिया गया है।
विज्ञ सवैया वर्णिक है,
*विज्ञ सवैया विधान:--*
२३ वर्ण प्रति चरण होंगे।
१२,११ वर्ण पर यति अनिवार्य है
४ चरण का एक सवैया होगा।
चारों चरण समतुकांत हो।
मापनी:- सगण × ७ + गुरु + गुरु
सगण सगण सगण सगण,
सगण सगण सगण गुरु गुरु
११२ ११२ ११२ ११२,
११२ ११२ ११२ २ २
. 🦢 *विरहा* 🦢
. ••••••
पिक बोल सुने विरहा मन ने,
मन मोर शरीर सखी हारी।
रस रंग बसंत चढे तन में,
तब सोच रही मन से नारी।
वन मोर नचे तितली सब ही,
भँवरे फिरते कब से भारी।
पिय सावन आकर लौट गए,
तबसे न मिली उनसे प्यारी।
. •••••••
भँवरे रस चाह रखे तितली,
मँडरा कर वे रस को पीने।
पिक कूजत पीव मिले वन में,
वन मोर धरा रस को छीने।
यह रंग बसंत यही अब है,
खग लौट रहे घर को झीने।
मम कंत विदेश बसे सजनी,
प्रिय पीव मिले मन को जीने।
. .....🦢🦢...
...✍©
बाबू लाल शर्मा, बौहरा *विज्ञ*
सिकन्दरा, दौसा, राजस्थान
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आज मंच पर आए दो नए छंद विधान
आदरणीय बाबूलाल शर्मा बौहरा विज्ञ साहेब जी और नीतू ठाकुर विदुषी जी के नूतन अविष्कार पर मेरा प्रयास .....
*विज्ञ सवैया विधान:--*
२१ वर्ण प्रति चरण होंगे।
१२,११ वर्ण पर यति अनिवार्य है
४ चरण का एक सवैया होगा।
चारों चरण समतुकांत हो।
मापनी:-
सगण सगण सगण सगण सगण सगण सगण गुरु गुरु
११२ ११२ ११२ ११२, ११२ ११२ ११२ २२
*विज्ञ सवैया*
*क्षण खण्डित सा दिखता वह तो, जब भी प्रिय भाव सजा पाया।*
*फिर आह कहीं निकली हिय से, नित कष्ट सहे तन जो छाया।*
*हिय एक रहे हरि आनन यूँ, जप नित्य तभी जपना भाया।*
*तब भूल वही करता जन ये, स्मृति के वश आज ठगे माया।*
*विदुषी सवैया*
22 वर्ण प्रति पंक्ति
12, 11 की यति अनिवार्य है।
विदुषी सवैया में 4 यति सहित कुल 8 चरण होंगे।
सम चरणों के तुकांत समान्त होंगे।
वाचिक रूप भी मान्य होगा।
मापनी ~
रगण रगण रगण रगण रगण रगण रगण गुरु
212 212 212 2, 12 212 212 212 2
*विदुषी सवैया*
भीष्म को देखके लाल आँखे, वहाँ और है क्रुद्ध देखो शिखण्डी।
पूर्व में एक अम्बा रही थी, वही युद्ध में है बनी आज चण्डी।
पार्थ संगी शिखण्डी खड़े है, वहाँ कृष्ण भी एक सच्चे त्रिदण्डी।
अंजनी पुत्र के हाथ में थी, पताका वही जीत की श्रेष्ठ झण्डी।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
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