Monday 9 August 2021

जय सवैया शिल्प विधान और उदाहरण

 आ. गुरुवर संजय कौशिक विज्ञात जी,

के मार्गदर्शन में नीतू ठाकुर 'विदुषी' जी द्वारा आविष्कृत-नवीन छंद-

उपजाति जय सवैया
२३ वर्ण होते हैं
११,१२  वें वर्णों पर यति अनिवार्य है।
सम चरणों के तुकांत समान्त होंगे।
मापनी ~
गुरु +(रगण ×७)+ गुरु
२ २१२ २१२ २१२ २,
१२ २१२ २१२ २१२ २


प्रीत कहान

         
मीरा हुई कृष्ण की भक्त ऐसी,
सयानी वही  राधिका सी रही है।
राधा उदासी सही कष्ट भारी,
सखी सौत जैसे वही तो सही है।
कान्हा सनेही सभी मीत माने,
सदा ही वही मीत आँखे बही है।
है प्रीत भारी निभाना कहानी,
सहे 'विज्ञ' जैसी वही तो कही है।

*बाबू लाल शर्मा,बौहरा,'विज्ञ'*
*सिकन्दरा, दौसा, राजस्थान*

एकता सवैया शिल्प विधान और उदाहरण

आ. गुरुवर संजय कौशिक विज्ञात जी,

के मार्गदर्शन में बाबू लाल शर्मा,बौहरा,'विज्ञ' जी द्वारा आविष्कृत-नवीन छंद-

"एकता सवैया" में चार चरण होते हैं,
चारों चरण समतुकांत होने चाहिए।


उपजााति एकता सवैया
विधान:- तगण +( ७ सगण)+ २
२५ वर्ण, १२,१३ वें वर्णो पर यति हो।
मापनी-
२२१ ११२ ११२ ११२,
११२ ११२ ११२ ११२ २
          
अकबर - मेवाड़ : महत्व
           
मेवाड़ यह वीर प्रसूत धरा,
सुत वीर  अनेक  हुए बलिदानी।
बप्पा कुल सुराज रहा चलता,
वह  रावल  जौहर  पद्मिनि रानी।
गौरा भट लड़े खिलजी रिपु से,
वह बादल था अति वीर गुमानी।
राणा कुल विशेष सचेत यहाँ,
यह  वीर  धरा  गिरि चूनर धानी।
            
मेवाड़ मुगलों हित कंटक था,
यह संकट शाह  जलाल बताता।
राणा  कुल  रहे  हर राह रुकी,
गुजरात  समेत  धरा  मरु आता।
दिल्ली तक विशेष गया पथ ये,
हर कार्य इसी पथ से रुक जाता।
इस्लामिक निरोधक हिंदु यहीं,
पथ सैन्य रुके  मुगले हित नाता।

*बाबू लाल शर्मा,बौहरा,'विज्ञ'*
*सिकन्दरा, दौसा, राजस्थान*

महेश सवैया शिल्प विधान और उदाहरण

आ.संजय कौशिक विज्ञात जी के,

मार्गदर्शन में
बाबू लाल शर्मा, बौहरा विज्ञ जी द्वारा
आविष्कृत-नवीन छंद को,
"महेश सवैया" नाम से जाना जाता है।
यह वर्णिक सवैया छंद है,
चार चरण का एक छंद होता है,
चारों चरण समतुकांत होने चाहिए।


उपजााति महेश सवैया


विधान:--
२२ + ( ७ × सगण ) + २
२४ वर्ण, १३,११ वें वर्ण पर यति हो।
मापनी:--
२२ ११२ ११२ ११२ ११,
२ ११२ ११२ ११२ २

कुंभलगढ- प्रताप
             
मेवाड़ धरा जरगा गिरि गर्वित,
कुम्भल दुर्ग सजे मतवाला।
पन्ना वर धाय उदै हित रक्षक,
जन्म प्रताप लिए प्रण पाला।
दीवार प्रसारित बुर्ज सुरक्षित,
रक्षक था वह दुर्ग निराला।
राणा प्रणवीर प्रताप चढ़े गढ़,
शत्रु कँपे चमके जब भाला।
            
राणा कुलवीर प्रताप दिवाकर,
था मुगलों हित संकट भारी।
भाला कर में करवाल रखे द्वय,
चेतक पीठ चढ़ा बलधारी।
मेवाड़ रखे वह भूमि सुरक्षण,
युद्ध रहा लड़ता शुभ कारी।
ऐसा भट ही इतिहास रचे वह,
सैन्य रही जिससे सब हारी।

*बाबू लाल शर्मा,बौहरा,'विज्ञ'*
*सिकन्दरा, दौसा, राजस्थान*

पूजा सवैया शिल्प विधान और उदाहरण

 आ. गुरुदेव संजय कौशिक विज्ञात जी के

मार्गदर्शन में बाबू लाल शर्मा,बौहरा,'विज्ञ' जी द्वारा आविष्कृत-नवीन छंद को

"पूजा सवैया" नाम दिया गया है।
यह वर्णिक सवैया है।
चार चरण का छंद है,
चारों चरण समतुकांत होने चाहिए।


उपजााति पूजा सवैया
विधान-
गुरु+लघु+(७× सगण )+ लघु +गुरु
२५ वर्ण, १२,१३,  वें वर्ण पर यति
मापनी:-
२१ ११२ ११२ ११२ १,
१२ ११२ ११२ ११२ १२


चेतक चाह सवार
              
अश्व वह चेतक चाह सवार,
मिले बलवान  महा  रणवीर हो।
भूमि पर रक्षण धर्म समाज,
लिया  अवतार महा हय धीर हो।
वीर रजपूत महा रण दूत,
धरा हित जन्म सहे जन पीर हो।
अश्व पर वीर प्रताप सवार,
हुए स्थिर  देव लगे मधु क्षीर हो।
              
दुष्ट मुगलों पर तीव्र प्रहार,
मरे  अरि  घातक चेतक वार से।
वीर पलकें झपके झट अश्व,
मुड़े  कर  वार  अनेक  प्रकार से।
शत्रु गिरते मरते निज भाग्य,
बचे कुछ मूर्छित हो  खुर धार से।
'विज्ञ'  शिव के गण का अवतार,
धरा पर  शाप  सहे  भव भार  से।

*बाबू लाल शर्मा,बौहरा,'विज्ञ'*
*सिकन्दरा, दौसा, राजस्थान*

शान्ता सवैया शिल्प विधान और उदाहरण

 आ. संजय कौशिक विज्ञात जी के

मार्गदर्शन में बाबू लाल शर्मा,बौहरा,'विज्ञ' जी द्वारा आविष्कृत-नवीन छंद को

"शान्ता सवैया" नाम दिया गया है।
यह वर्णिक सवैया है।
चार चरण का छंद है,
चारों चरण समतुकांत होने चाहिए।

 उपजाति शान्ता सवैया
विधान:--
२२ + ( ७× सगण ) + २२
२५ वर्ण, १३,१२ वें वर्ण पर यति हो
मापनी :--
२२ ११२ ११२ ११२ ११,
२ ११२ ११२ ११२ २२

मीरा - माधव
                  
राठौड़  बसा  पुर  मेड़तिया गढ़,
राज्य  करे कुल में  जनमे हीरा।
संस्कार मिले घर  बाल पने सब,
माधव को पति मान लिए मीरा।
संयोग बना पितु ब्याह किए तब,
भोज बने पति लौकिक जंजीरा।
चित्तौड़  रही  हरि  मंदिर मे नित,
नृत्य  करे  धुन  ढोलक  मंजीरा।

( जंजीरा~ जंजीर की आकृति
में, कपड़े पर सिलाई,कढ़ाई )
           
मीरा पति मान चुकी  मनमोहन,
भोज बने पति  रीति  बनी जैसे।
पूजा  करती  हरि मानस पावन,
दर्शन  अर्चन्   संगति  भी  वैसे।
संयोग  बने  हरि से  मन भावन,
सत्य वियोग  सहे पति  का ऐसे।
राणा  परिवार चिढ़े  उनसे  फिर,
भोज  सनातन  धर्म  निभे  कैसे।

*बाबू लाल शर्मा,बौहरा,'विज्ञ'*
*सिकन्दरा, दौसा, राजस्थान*

विज्ञात बेरी सवैया शिल्प विधान और उदाहरण

गुरुदेव संजय कौशिक 'विज्ञात' जी द्वारा आविष्कृत

उपजाति विज्ञात बेरी सवैया

२३ वर्ण, १२,११ वें वर्ण पर यति हो
मापनी-
२२१ १२२ २११ २११,
२११ २११ २२१ २२


राणा रण रंगी
              
चित्तौड़  सहेजे  मानवता  मन,
चेतक  मित्र   बनाया  गुमानी।
मेवाड़  हितैषी   राग  भरे तन,
सूर   हकीम  सुहानी  कहानी।
घाटी  वन  सारे  पर्वत  में सब,
भील  सचेत  खड़े  देह  दानी।
राणा  प्रण धारे  तुंग  अड़ावल,
'विज्ञ' लिखे पढ़िए  छंद ज्ञानी।
            
राणा  रण  रंगी  थे चढ़ चेतक,
शत्रु विनाशक  ले  संग भाला।
श्वाँसे रिपु सेना की रुकती तब,
और  मुखों पर  आसन्न ताला।
आए वह  राणा भाग चलें सब,
शोर  करे अरि  सेना  रिसाला।
आड़ावल  की  घाटी मँगरो पर,
भील  सजे रण की  रंग माला। 

*बाबू लाल शर्मा,बौहरा,'विज्ञ'*
*सिकन्दरा, दौसा, राजस्थान*  

तेजल सवैया शिल्प विधान और उदाहरण

 आ. गुरुदेव संजय कौशिक विज्ञात जी

के मार्गदर्शन में बाबू लाल शर्मा,बौहरा,'विज्ञ' जी द्वारा आविष्कृत-

नवीन छंद "तेजल सवैया"  में
चार चरण होते हैं,
चारों चरण समतुकांत हों।

उपजाति तेजल सवैया
विधान:- ११ + ( ७ सगण) + २
२४ वर्ण, १२,१२ वें वर्ण पर यति हो,
मापनी:-
११ ११२ ११२ ११२ १,
१ २ ११२ ११२ ११२ २

वीर प्रताप
              
समय  गया   रजवाड़   समेट,
सुवंश  रहे  चलते अभिमानी।
विगत तुम्हे  वह बात  विचार,
विवेक कहे कुल वीर कहानी।
रिपु मुगलों हित मान जलाल,
प्रताप  धरा हित वीर गुमानी।
समर  किये  रिपु  से  रजपूत,
सुरक्षित वार किये बलिदानी।
             
सुजन  प्रताप  हुआ  प्रणवीर,
कुपंथ विनाशक पीकर हाला।
मुगल  डरे  जब  वीर   प्रताप,
उमंग भरे असि ले कर भाला।
मुगल जलाल  डरे  रिपु  सैन्य,
प्रवीर  प्रताप   लड़े  मतवाला।
सजग  धरा  हित  धर्म   सुरक्ष,
स्वदेश स्वतंत्र रखा प्रण पाला।

*बाबू लाल शर्मा,बौहरा,'विज्ञ'*
*सिकन्दरा, दौसा, राजस्थान*

कुमकुम सवैया शिल्प विधान और उदाहरण

 आ. गुरुदेव संजय कौशिक विज्ञात जी

के मार्गदर्शन में बाबू लाल शर्मा,बौहरा,'विज्ञ' जी द्वारा आविष्कृत-

नवीन छंद को "कुमकुम सवैया"
कहा गया है,
यह वर्णिक सवैया है,
चार चरण होंगे, चारों समतुकांत हों।


कुमकुम सवैया


विधान:- सात सगण + लघु गुरु
२३ वर्ण,  १२,११ पर यति हो
मापनी-
११२ ११२ ११२ ११२,
११२ ११२ ११२ १२


 *मीत*
        
मनमीत मिले मन मे प्रिय वे,
तब से हम तो हरषा रहे।
कुछ छूट गया वह याद करें,
तन में रस नूतन सा बहे।
पिछले सपने अपने उनके,
नव स्वप्न परस्पर ही कहे।
गत कष्ट भुला नव रीति रचे,
दुख भोग चुके सुखदा सहे।

भव भाग्य बने मन में पलते,
इस हेतु  मिले  मनमीत है।
हर कष्ट परस्पर बाँट सहें,
नव छंद  लिखें  नवगीत है।
दृग कोर प्रिये सुखसार लगे,
तब प्रीति बने मन जीत है।
यह स्वप्न सही पर भंग न हो,
यह सोच  रहे मन भीत है।

*बाबू लाल शर्मा,बौहरा,'विज्ञ'*
*सिकन्दरा, दौसा, राजस्थान*

सपना सवैया शिल्प विधान और उदाहरण

आ. गुरुवर संजय कौशिक विज्ञात जी,

के मार्गदर्शन में अनिता मंदिलवार 'सपना' जी द्वारा आविष्कृत-नवीन छंद-

उपजाति सपना सवैया

२४ वर्ण, १२,१२ वर्णों पर यति हो
मापनी-
२२२ १२२ १२२ १२२,
१२२ १२२ १२२ २२२

*राधा*

राधे श्याम झूले सुहानी छटा है,
कहे राधिका जी कन्हैया हो मेरे।
आई गोपिकाएँ ठिठोली करें वे,
कन्हैया  सभी के हमारे  या तेरे।
कान्हा नित्य आते सवेरे जगे तो,
दही दूध  माँगे  नही दे  तो  हेरे।
राधा से सभी यों कहे गोपिकाएँ,
खड़ी वे सनेही कन्हैया को घेरे।
            
लाई बाँसुरी को छिपा कौन गोपी,
निहारे कन्हैया करे सोच साधे।
गोपी वे मनों में रही सोचती थी,
कन्हैया कहे चोर  मेरी है राधे।
कान्हा संग भी ग्वाल संगी सनेही,
हुए राधिके संग संगी थे आधे।
रोई राधिका कृष्ण आँसू छिपाए,
कन्हैया लगाए सनेही को काँधे।

*बाबू लाल शर्मा,बौहरा,'विज्ञ'*
*सिकन्दरा, दौसा, राजस्थान*

अर्णव सवैया शिल्प विधान और उदाहरण

 आ. गुरुवर संजय कौशिक विज्ञात जी,

के मार्गदर्शन में डॉ अनिता भारद्वाज 'अर्णव' जी द्वारा आविष्कृत-नवीन छंद-

उपजाति अर्णव सवैया

तगण ( राजभा×५ ) तगण गुरु गुरु
२३ वर्ण, १२,११ पर यति
२२१ २१२ २१२ २१२
२१२ २१२ २२१ २२

मीत
              
हे मित्र याद आती तुम्हारी हमें,
नित्य आते सिखाने के बहाने।
वे स्वप्न भंग होते रहे रात के,
बैठ के छंद गाते जो सुहाने।
भूले नही पुरानी कहानी अभी,
याद आती रहेगी ही सताने।
आओ कभी हमारे यहाँ गेह में,
बात सारी सुहानी को जताने।

           
आना प्रिये कभी तो हमारे यहाँ,
पोटली याद की संगी रहेगी।
गाएँ  सुनें वही गीत साथी वही,
बाँसुरी बीन भी वे ही सहेगी।
आवाज भी हमारी वही तो रहे,
गीत के बोल भी संगी कहेगी।
दोनो कहें सुने छंद भी संग ही,
मीत पीड़ा सुरों में ही बहेगी।

*बाबू लाल शर्मा,बौहरा,'विज्ञ'*
*सिकन्दरा, दौसा, राजस्थान*

राधेगोपाल सवैया शिल्प विधान और उदाहरण

 आ. गुरुवर संजय कौशिक विज्ञात जी,

के मार्गदर्शन में राधा तिवारी 'राधेगोपाल' जी द्वारा आविष्कृत-नवीन छंद-

उपजाति राधेगोपाल सवैया 

२४ वर्ण, ११,१३ पर यति हो
विधान/मापनी
२२१ १२१ १२१ १२,
१ १२१ १२१ १२१ १२२


हल्दीघाटी समर- छल
            
आकाश ढँका रज पीत उड़ी,
कुछ देख नहीं सकते तम छाए।
मारें रजपूत विशेष किसे,
रिपु के सम ही मुगले दल साए।
पूछे तब आसफ खान कहे,
सुन वीर  बदायुँ  वृथा  भरमाए।
ऐसी तुम चाल चलो रण में,
रजपूत स्वत: सब ही कट जाए।
           
मारो रजपूत प्रवीर भले,
मुगलो हित लाभ रहे यह भारी।
इस्लाम बचे रजपूत मरे,
यह जीत रहे  मुगलों हितकारी।
मेवाड़ मिले न मिले हम को,
रजपूत मरे रण  हिन्दु  विकारी।
हल्दी थल हिंदु लहू शव हो,
सुन लो यह  बात बदायुँ हमारी।

*बाबू लाल शर्मा,बौहरा,'विज्ञ'*
*सिकन्दरा, दौसा, राजस्थान*

सुधी सवैया शिल्प विधान और उदाहरण

आ. गुरुवर संजय कौशिक विज्ञात जी,

के मार्गदर्शन में अनुराधा चौहान 'सुधी' जी द्वारा आविष्कृत-नवीन छंद-

उपजाति सुधी सवैया

२३ वर्ण,  १२,११ पर यति
१२१ १२१ १२१ ११२,
१२१ १२१ १२२ १२


संगिनी

उठो सजनी नवभोर चहके,
सजे अरमान हमारे नए।
चलें नव पंथ प्रकाशित करें,
बुरे दिन रात बहाने गए।
भरें हम प्रीति सनेह मन में,
सुभाषित बोल सुहाने हुए।
कहें मन पीर मिलो तुम प्रिये,
परस्पर चोंच पखेरू छुए।       

    
सुगंधित जीवन नेह तुमसे,
हमे इस कष्ट सही देह में।
सहेज रखूँ इसको हृदय में,
धरोहर जीवन में गेह में।
हरो प्रिय मानस कष्ट तन के,
रखो दृग कोर हमें नेह में।
बनें घन श्याम रहें हम सहें,
उड़ें नभ मेघ बने मेह में।

*बाबू लाल शर्मा,बौहरा,'विज्ञ'*
*सिकन्दरा, दौसा, राजस्थान*

सुवासिता सवैया शिल्प विधान और उदाहरण

आ. गुरुवर संजय कौशिक विज्ञात जी,

के मार्गदर्शन में चमेली कुर्रे 'सुवासिता' जी द्वारा आविष्कृत-नवीन छंद-

उपजाति सुवासिता सवैया

विधान-
सुवासित सवैया में २४ वर्ण होते हैं,
१३,११ वें वर्ण पर यति हो।
२१२ ११२ १२२ १२१ १,
२१२ १२२ ११ २११


         सावन
               
नेह सावन का सँजोए धरा यह,
देह हो  रही  है मन भावन।
मेघ अम्बर में  चढ़े हैं घटा जब,
भूमि  मेह  का नेह सुहावन।
मीत याद  विशेष आते रहें नित,
प्रीति को  सहेजें बन पावन।
ओढ़  चूनर  रंग  धानी धरा तल,
'विज्ञ' यों झुलाए यह सावन।

*बाबू लाल शर्मा,बौहरा,'विज्ञ'*
*सिकन्दरा, दौसा, राजस्थान*


प्रज्ञा सवैया शिल्प विधान और उदाहरण

आ. गुरुवर संजय कौशिक विज्ञात जी,

के मार्गदर्शन में कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा' जी द्वारा आविष्कृत-नवीन छंद-

उपजाति प्रज्ञा सवैया

२३ वर्ण, १२,११ वर्णों पर यति हो।
२२२ २१२ २१२ २११
२१२ २१२ २११ २२

राणा-चेतक

मेवाड़ी वीर राणा चढ़े चेतक,
दौड़ते दौड़ते अश्व थकाया।
घोड़ा रोका तभी वीर छाँया तरु,
पेड़ के अश्व के बंध लगाया।
थोड़ा चारा दिया अश्व को लाकर,
और पानी पिलाने वह लाया।
लाए जो संग में भोज वे खाकर,
नीर पीने लगे पेट छकाया।


संगिनी

आओ तो संगिनी साथ मेरे तुम,
पंथ में आपके संग रहूँगा।
बातें वे याद हैं संग में थी जब,
आज सारी कथा संग कहूँगा।
मेघों से मेघ के संग संघर्षण,
नीर वर्षा बनूँ और बहूँगा।
आए आँधी भले मेह भारी हिम,
संग होगी तभी मौन सहूँगा।।

*बाबू लाल शर्मा,बौहरा,'विज्ञ'*
*सिकन्दरा, दौसा, राजस्थान*

कोविद सवैया शिल्प विधान और उदाहरण

आ. गुरुवर संजय कौशिक विज्ञात जी,

के मार्गदर्शन में परमजीत सिंह 'कोविद' जी द्वारा आविष्कृत-नवीन छंद-

उपजाति कोविद  सवैया

विधान- २२ वर्ण
यति ११,११ वर्ण पर
२११ २२२ २११ २२,
२११ २२२ ११२ २२
वाचिक रूप मान्य होगा


तीर्थ समझ चित्तौड़
              
पारस हल्दीघाटी हर मँगरी,
वीर प्रसूता मात यही माटी।
भारत अकबर से तंग हुआ था,
कायर मुगलों ने यह भू चाटी।
दुर्ग बड़े मेवाड़ी गिरि मँगरे,
शत्रु हरा कर नाक जहाँ काटी।
वंश महाराणा का सम दिनकर,
तीर्थ समझ चित्तौड़,धरा,घाटी।
           
वीर प्रतापी बप्पा कुल राणा,
युद्ध सनेही धीर नृपति सारे।
वीर हुए गौरा बादल से भट,
शत्रु हजारों रण लड़ते मारे।
युद्ध लड़े कुम्भा ने कितने ही,
धीर सजग रण वीर नहीं हारे।
बाबर से साँगा ने रण ठाना,
चेतक-राणा युद्ध लड़े भारे।

*बाबू लाल शर्मा,बौहरा,'विज्ञ'*
*सिकन्दरा, दौसा, राजस्थान*

साँची सवैया शिल्प विधान और उदाहरण

आ. गुरुवर संजय कौशिक विज्ञात जी,

के मार्गदर्शन में इन्द्राणी साहू 'साँची' जी द्वारा आविष्कृत-नवीन छंद-

उपजाति साँची सवैया

२३ वर्ण, १२,११ वर्ण पर यति
२२१ २२१ २२२ ११२,
२२१ २२१ २२१  १२


मानसिंह :: शांति दूत

चित्तौड़ का दुर्ग मेवाड़ी धरती,
चाहे शहंशाह ये आन ढहे।
हे मान मेरे मनाना पाथळ को,
माने शहंशाह का मान रहे।
सत्ता हमारी सदा देखूँ बढ़ती,
हो नाम मेरा सुलेमान कहे।
हों मित्र संगी रहे मेवाड़ धरा,
तो शत्रु होंगे नहीं रक्त बहे।
          
सत्ता शहंशाह टाले युद्ध भले,
मेवाड़ भारी लगे यों कँपना।
चित्तौड़ शाही बनाना है करना,
वार्ता शहंशाह का है सपना।
होगा नहीं युद्ध चाहें शांति बने,
जाएँ सखे मान मानूँ तपना।
शाही खजाना भरेगा यों लगता,
मेवाड़ होगा हमारा अपना।

*बाबू लाल शर्मा,बौहरा,'विज्ञ'*
*सिकन्दरा, दौसा, राजस्थान*

विदुषी सवैया शिल्प विधान और उदाहरण

आ. गुरुवर संजय कौशिक विज्ञात जी,

के मार्गदर्शन में नीतू ठाकुर 'विदुषी' जी द्वारा आविष्कृत-नवीन छंद-

उपजाति विदुषी सवैया

२२वर्ण, १०,१२ पर यति
७ रगण + गुरु
२१२ २१२ २१२ २,
१२ २१२ २१२ २१२ २

चित्तौड़ का घेराव

वीर चित्तौड़ का दुर्ग छोड़े,
चले अश्व मेवाड़ के वन्य जाते।
शाह सेना लगाती पता थी,
गए सैनिको  संग  राणा बताते।
खोजते वीर को खो रहे थे,
स्वयं सैन्य शाही मरे लौट आते।
जंगलों में छिपा दुर्ग था वो,
पता शत्रु कैसे कभी खोज पाते।

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*साधना*
*विधा - विदुषी सवैया*
212 212 212 2, 12 212 212 212 2
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साधना से मिली दिव्य काया, अकर्मण्यता में नहीं डूब जाना ।
यक्ष गंधर्व या देवता हों, सभी चाहते मानवी देह पाना ।
देह की शुद्धता पे कभी भी, नहीं छद्म का मैल कोई लगाना ।
हर्ष का पुष्प "साँची" खिला के, सुहानी धरा चाहती मुस्कुराना ।।67।।

साधना से जगा शक्ति प्रज्ञा, बनो सत्य भाषी तजो छद्म सारे ।
प्रेम से पूर्ण व्यवहार ही तो, सभी प्राणियों के बने हैं सहारे ।
कर्म में ही भरो मर्म ऐसा, सदा विश्व ये नाम तेरा उचारे ।
धार सद्बुद्धि श्रृंगार "साँची", क्षमा वान ज्ञानी स्वयं को सँवारे ।।68।।

      *इन्द्राणी साहू"साँची"*
         भाटापारा (छत्तीसगढ़)     

               
खोज हारी थकी शाह सेना,
गई लौट  के दुर्ग  चित्तौड़ आए।
शाह पूछे उन्हें घूर आँखे,
नही ढूँढ  राणा  सके हैं  बताए।
देश भू को बचाने छिपे जो,
वही धीर  राणा बचे भी  बचाए।
धर्म रक्षा हितैषी रहे वे,
महा वीर  राणा  उदै सिंह  छाए।
         👀🌼👀

*बाबू लाल शर्मा,बौहरा,'विज्ञ'*
*सिकन्दरा, दौसा, राजस्थान*

विज्ञ सवैया शिल्प विधान और उदाहरण

 आ. गुरुवर संजय कौशिक विज्ञात जी,

के मार्गदर्शन में बाबूलाल शर्मा 'विज्ञ' जी द्वारा आविष्कृत-नवीन छंद-

उपजाति विज्ञ सवैया

आ. गुरुदेव संजय कौशिक विज्ञात जी
के मार्गदर्शन में-


विज्ञ सवैया विधान:--
२३  वर्ण प्रति चरण होंगे।
१२,११ वर्ण पर यति अनिवार्य है
४ चरण का एक सवैया होगा।
चारों चरण  समतुकांत हो।
मापनी:- सगण × ७ + गुरु + गुरु
सगण सगण सगण सगण,
सगण सगण सगण गुरु गुरु
११२  ११२  ११२  ११२,
११२   ११२  ११२   २  २
.                 ६५
शुभ देश धरा  इस भारत में,
मरुभूमि  महा  रणधीरों की।
बलिदान हुए  सुत वीर  यहाँ,
बस बात रखी प्रण वीरों की।
गढ़ दुर्ग  कहे  करनी  उनकी,
पथ पर्वत की  सरि तीरों की।
वह याद करूँ कुछ बात कहूँ,
निपजे  इस भू  पर हीरों की।
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इस वीर  प्रसूत  धरा पर जो,
पनपी निभती  परिपाटी की।
यह बात सुनें  तुम मीत कहूँ,
रज चंदन सी  उस माटी की।
रज  पूत  लड़े  हर  पूत  लड़े,
रज  मेद  महा उस वाटी की।
प्रण धार  महान  प्रताप लड़ा,
पथ पर्वत की  उस घाटी की।
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प्रणवीर कहें  उस को हम तो,
वह पूत  प्रताप   प्रतापी  था।
गढ दुर्ग रखे  कुल  मान रखा,
रज  पूत  प्रताप  प्रतापी ‌ था।
कुल आन रखे  कुल देव रखे,
रण  दूत  प्रताप  प्रतापी  था।
सब भूमि बचे तन शीश बचा,
अनुभूत  प्रताप  प्रतापी   था।
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यह 'विज्ञ 'कथा रचते उसकी,
रिपु को नित धूल चटाता था।
वह  पूत  महा  रण धीर  धरा,
हित  में  अरमान सजाता था।
अरि काट करे  अभिषेक धरा,
शिव को रिपुशीश चढ़ाता था।
मुगलों  पर   वार  करे  लड़ता,
वह  वीर  प्रताप  कहाता  था।
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*बाबू लाल शर्मा,बौहरा,'विज्ञ'*
*सिकन्दरा, दौसा, राजस्थान*

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*शुभदा तनया*
*विधा - *विज्ञ सवैया*
११२  ११२  ११२  ११२, ११२   ११२  ११२   २  २
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उतरी गगनांगन से शुभदा, धर रूप परी सम आती है ।
तनया शुभ पुष्प समान सदा, घर सौरभ से भर जाती है ।
अति सुंदर चंचल मोहक सी, मनजीत बनी मुसकाती है ।
रखती मन जोड़ सभी जन का, नित प्रेम सुधा बरसाती है ।।65।।

तनया जिस गेह रहे सुख से, घर स्वर्ग समान वही होता ।
अपमान जहाँ मिलता उसको, वह स्थान खुशी अपनी खोता ।
वरदान सुता समझे जन जो, निज जीवन में न कभी रोता ।
कर पूजित देवि स्वरूप सुता, वह पाप सभी अपने धोता ।।66।।

      *इन्द्राणी साहू"साँची"*
         भाटापारा (छत्तीसगढ़)     

विज्ञात सवैया शिल्प विधान और उदाहरण

गुरुदेव संजय कौशिक 'विज्ञात' जी द्वारा आविष्कृत

उपजाति विज्ञात सवैया

विधान:- २३ वर्ण प्रति चरण
यति १२,११
मापनी-
२१२ २२१ २२१ २२२,
२१२ २११ २२१ २२ 

भारतीय स्थिति     

आगरा में था  शहंशाह इस्लामी,
चाहता  भारत  का  शाह  होना।
मान आमेरी घटाया  बने स्वार्थी,
ब्याह की रीति  नए  बीज बोना।
राजपूतों  में  पड़ी  फूट  सामंती,
स्वार्थ हो सिद्ध भले मान खोना।
सैन्य शाही स्वार्थ  साधे बढ़े ऐसे,
मातृ भू  भाग्य  बचा  मात्र रोना।

वंश राणा का

वीर मेवाड़ी  चले  वंश राणा का,
मान   वीरोचित   चित्तौड़  भारी।
दुर्ग ऊँचा  शीश मेवाड़ की थाती,
आन  के  मान  लड़े  धीर  धारी।
ढाक  वाले  पर्वतों  से  घिरे ऊँचे,
दुर्ग  ही   दुर्ग  प्रजा   पीर   हारी।
शत्रु  काँपे नाम से  सिंह राणा से,
स्वप्न  में  जो  दिखते भीत कारी।
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........✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा,विज्ञ
सिकन्दरा, दौसा,  राजस्थान
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