आ. गुरुवर संजय कौशिक विज्ञात जी,
के मार्गदर्शन में इन्द्राणी साहू 'साँची' जी द्वारा आविष्कृत-नवीन छंद-
उपजाति साँची सवैया
२३ वर्ण, १२,११ वर्ण पर यति
२२१ २२१ २२२ ११२,
२२१ २२१ २२१ १२
मानसिंह :: शांति दूत
चित्तौड़ का दुर्ग मेवाड़ी धरती,
चाहे शहंशाह ये आन ढहे।
हे मान मेरे मनाना पाथळ को,
माने शहंशाह का मान रहे।
सत्ता हमारी सदा देखूँ बढ़ती,
हो नाम मेरा सुलेमान कहे।
हों मित्र संगी रहे मेवाड़ धरा,
तो शत्रु होंगे नहीं रक्त बहे।
सत्ता शहंशाह टाले युद्ध भले,
मेवाड़ भारी लगे यों कँपना।
चित्तौड़ शाही बनाना है करना,
वार्ता शहंशाह का है सपना।
होगा नहीं युद्ध चाहें शांति बने,
जाएँ सखे मान मानूँ तपना।
शाही खजाना भरेगा यों लगता,
मेवाड़ होगा हमारा अपना।
*बाबू लाल शर्मा,बौहरा,'विज्ञ'*
*सिकन्दरा, दौसा, राजस्थान*
No comments:
Post a Comment