Sunday 6 June 2021

सुशीला छंद शिल्प विधान और उदाहरण


 सुशीला छंद 

■ सुशीला छंद का शिल्प विधान ■ 


वार्णिक छंद है जिसकी मापनी और गण निम्न प्रकार से रहेंगे यह दो पंक्ति और चार चरण का छंद है जिसमें 6,8 वर्ण पर यति रहेगी। सम चरण के तुकांत समान्त रहेंगे इस छंद में 11,14 मात्राओं का निर्धारण 6, 8 वर्णों में है किसी भी गुरु को लघु लिखने की छूट है इस छंद में लघु का स्थान सुनिश्चित है। लघु जहाँ है वहीं पर स्पष्ट आना चाहिए। मापनी का वाचिक रूप मान्य होगा।




122 222, 122 212 22


यगण मगण, यगण रगण गुरु गुरु (गा गा)


उदाहरण:-


हमारे आने से, जहाँ पे हर्ष छाये हैं।

बड़े वो मीठे जो, क्षणों ने गीत गाये हैं।।


घटाएं गाती हैं, जहाँ पे राग प्यारे से।

दिखाती बातों में, निभाती नेह न्यारे से।।


घरों की रोती हैं, वही प्राचीन सी भीतें।

सदा से ही देखी, यहाँ पे टूटती रीतें।।


संजय कौशिक 'विज्ञात'


🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺


 *करो कुछ ऐसा* 

***********


मही का राही हूॅं, मुझे तुम भूल मत जाना।

सुरों का रागी मैं, मुझे यूॅं झूमकर गाना।।


सुगंधित आच्छादन, इतर से बाग महकाना।

हॅंसी औषधि प्यारे,हृदय को खोल मुस्काना।।


दिखाकर सपने यूॅं, कहीं तुम छोड़ मत जाना।

बहा कर बरसातें, शहद सा नेह बरसाना।।


हमें दो सौगातें, जलाशय ताल भर जाए।

जली है दोपहरी, समय का सूर्य घबराए।।


सुना दो धुन मीठी, सुता का प्रेम हर्षाए।

पिला मद ऑंखों से, जिया दरवेश भटकाए।।


   *परमजीत सिंह कोविद*

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

सुशीला छंद

घटाओं से पूछो, व्यथाएँ क्यों सुनाती हैं।

जगाती है यादें, दृगों को क्यों रुलाती हैं।।


बजाए मीठी सी, धुनों की बाँसुरी प्यारी।

धरा झूमें नाचे, सजाये सृष्टि को सारी।।


प्रभाती गाती सी, उठाती भोर है जैसे।

उगाती है संध्या, खुशी के पुष्प को वैसे।।


सुरों सी हैं साँसे, कभी दौड़े कभी रूठे।

दिखाती आँखों को, लुभाते स्वप्न ये झूठे।।


नीतू ठाकुर 'विदुषी'


🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

सुशीला छंद

१.

खडे़ लेकल पत्थर, मिले जब भीड़ में अपने। 

भरोसे के ईटें, हृदय से तोड़ती सपने।। 

२.

हवा बनकर रिश्ते, दिशा यूँ देखती माने।

रुकी साँसे चल कर, उसे अब कौन पहचाने।। 

३.

अकेले ही चलना, नहीं पथ भीड़ में होता। 

करे जो जन आलस, वही फिर दौड़ता रोता।। 

४.

सिखाता हैं जीवन, कभी हँसना कभी रोना। 

मिले मंजिल दृढ़ से, उपल हर मील का होना।। 

      

चमेली कुर्रे 'सुवासिता'

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

सुशीला छन्द


भरोसा तेरा है,इसे मत टूटने देना।

तुझे दिल दे डाला, रखो मुझ पर प्रभू नैना।।


लगन लागी मन है,इसे मत कम कभी करना।।

हुई कोई भूलें, हृदय अपने तु मत धरना।।


 भरी राहें काॅंटों, इसे आ दूर कर देना।

करूं जीवन अर्पण, सुता का मान रख लेना।।


दिये दिन जो तूने, उसे सुख से बिता मेरे।

तुझे सौंपी डोरी, न छूटे हाथ से तेरे।।

 

   हेमा जोशी "स्वाति"

        लोहाघाट।

🌼🌼🌼🙏🙏🙏🙏🌼🌼🌼

Saturday 5 June 2021

विज्ञात सवैया और कोविद सवैया छंद विधान और उदाहरण

  

*कलम की सुगंध, छंदशाला,संचालन मंडल*


.     👀👀 *पंच परमेश्वराय:नम:*👀👀

*आ.अनिता भारद्वाज अर्णव जी की गरिमामयी उपस्थिति में*

*आदरणीय साखी गोपाल पंडा जी की अध्यक्षता में*

 *आ. बाबू लाल शर्मा बौहरा विज्ञ,* 

*एवं आ. इन्द्राणी साहू साँची जी, की समीक्षा एवं सहमति के आधार पर एवं पटल के सुधि छंदकारों,आ.बाबू लाल शर्मा बौहरा विज्ञ, आ.इन्द्राणी साहू सांची,आ.अनिता मंदिलवार सपना,आ.अभिलाषा चौहान जी, आ. आशा शुक्ला जी, आ.अर्चना पाठक निरंतर जी, आ. डाँ. एन.के. सेठी जी, आ. नीतू ठाकुर विदुषी जी, आ. बिंदु प्रसाद रिद्धिमा जी,आ. धनेश्वरी सोनी गुल जी, आ. सुरेश देवांगन जी, आ. राधा तिवारी,राधेगोपाल जी एवं आ. गीता विश्वकर्मा नेह जी, आ.मधु सिंही जी, आ.अनुराधा चौहान जी,आ. पुष्पा गुप्ता प्रांजलि जी,आ.सौरभ प्रभात जी, आ.कंचन वर्मा विज्ञांशी जी,आ.कमल किशोर कमल जी,आ. गुलशन खम्हारी प्रद्युम्न जी, आ. भावना शिवहरे जी,आ. अजीत कुमार जी,आ.पूजा शर्मा सुगंध जी, आ.श्वेता विद्यांशी जी*

 *की इन छंदों पर रचनाओं के विवेचन के आधार पर आज हिन्दी साहित्य हेतु दो नवीन छंद  "विज्ञात सवैया" और  "कोविद सवैया"  को सहर्ष मान्यता प्रदान की जाती है।*


१ *प्रथम.-   विज्ञात सवैया*

आविष्कारक... *संजय कौशिक विज्ञात*

विधान:-

23 वर्ण 12,11 पर यति के साथ लिखा जाता है

इसमें 4 पंक्ति 8 चरण रहते हैं 

तुकांत सम चरण में मिलाया जाता है 

चारों पंक्ति के तुकांत समान्त रहते हैं।

वाचिक रूप मान्य रहता है।

इसमें गण व्यवस्था और मापनी निम्न प्रकार से रहती है 

रगण तगण तगण मगण, रगण भगण तगण गुरु गुरु

212 221 221 222, 212 211 221 22

*उदाहरण-*

लेखनी के भाव टूटे पुकारें यूँ,

कौन ये व्यर्थ लिखे छंद पूछे।

तोड़ता है राग को जो सदा देखा,

देख लो बुद्धि दिखे मंद पूछे।

और पूरा जो धरे रूप प्यारा सा,

वो कहाँ है लघु सा नंद पूछे।

ज्ञान शब्दों का नहीं जानता है जो,

गीत के तोड़ वही फंद पूछे।।

.       .........    संजय कौशिक 'विज्ञात'

००००००००००००००००००


*२.द्वितीय -    कोविद सवैया*

आविष्कारक.. *परमजीत सिंह कोविद*

विधान:-

 विधान:- 11,11 वर्ण के दो चरण, एक पंक्ति में कुल  22 वर्ण और 18,18 पर यति प्रति चरण पंक्ति में कुल 36 मात्राएं।

चारों समांत तुकांत

वर्ण व्यवस्था और मापनी 👇

211 222 21122, =11 वर्ण,18 मात्राएं

211 222 112 22 =11 वर्ण,18 मात्राएं

 *उदाहरण :-* 

कृष्ण कन्हैया हे मोहन मेरे,

कष्ट हरो मैं तो अब लाचारी।

मान बचाओ ऐ पालक आओ,

डोर कटी मैं हूॅं अब प्रतिहारी।

सोच विचारो ये नष्ट करो रिपु,

वार करो हे केवट बलिहारी।

लाज छुपाती हूॅं कोमल पलकें,

प्राण सखा मैं जीवन आभारी।।

     ...........परमजीत सिंह कोविद

.                   👀👀🌼👀👀

*विज्ञात सवैया एवं कोविद सवैया दोनों छंदों को आज दिनांक ०४.०६.२०२१ को मान्यता प्रदान की जाती है।*


.........✍

*बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ*

वास्ते-

*कलम की सुगंध  : छंदशाला*

👀👀👀👀👀👀👀👀👀👀👀👀👀👀👀👀👀



🌼🌼 विज्ञात सवैया 🌼🌼


विधान:- २३ वर्ण प्रति चरण

यति १२,११

मापनी- २१२ २२१ २२१ २२२,२१२ २११ २२१ २२ वाचिक

.           *वंश राणा का*

.                 ••••••••

वीर मेवाड़ी हुआ वंश राणा का,

युद्ध वीरोचित प्रण धीर करते।

दुर्ग ऊँचे शीश मेवाड़ है गौरव,

मान हित शान लड़े आह भरते।

ढाक मँगरी रेत गिरि आक रजपूते,

झील जन मन दृग की पीर हरते।

शत्रु काँपे नाम से सर्प शेरों सम,

स्वप्न में जो उठ उठ भीत डरते।

.           *********

........✍©

बाबू लाल शर्मा,बौहरा,विज्ञ

सिकन्दरा, दौसा,  राजस्था

🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁

विज्ञात सवैया

व्योम भी ये आज रोने लगा सारा, ले नए कष्ट घिरे मेघ काले ।

व्याधियाँ बाँहें पसारे खड़ी देखो, हर्ष के द्वार पड़े आज ताले ।
युक्ति सारी मानवी आज हारी सी, दुःख को मानव कैसे सँभाले ।
शूल से आपूर्ण है ये दिशा सारी, कष्ट से पाँव पड़े आज छाले ।।

         *इन्द्राणी साहू"साँची"*
         भाटापारा (छत्तीसगढ़)     

🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁

*विज्ञात सवैया*

राधिका के कृष्ण हैं देख काले जो, बाँसुरी की धुन छेड़ें सुहानी।
धूप बालाएँ रहे श्याम छाया से, रूप के मोहक आँखें लुभानी।
लूटता है चित्त मीठी धुनों से वो, नेह का फंद बनाता दिवानी।
देवता मानें जिसे लोग सारे वो,नाचता गोकुल में श्रेष्ठ ज्ञानी।

(2)
प्रेरणा आती नहीं एक भी कोई, ढूँढ लो प्रेरक हैं कौन प्यारे।
रात की बातें कहे भोर से पृथ्वी, टूटते देख रही नित्य तारे।
प्रीत ही जाने व्यथाएँ जिया की ये, पीर से हैं दृग के नीर खारे।
काल ही खेले बना प्राण कौड़ी जो, व्याधियों से तन टूटे व हारे।

नीतू ठाकुर 'विदुषी'

🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁

प्रेम की भाषा अनोखी सदा भोली,

प्रेम ही जीवन पूंजी हमारी ।।

बोलते लाखो सदा बात आधी क्यों,

जागती आहट में मैं तुम्हारी।।

मोह घेरे प्रेम ज्वाला बढा़ती यूँ,

शाँत है वो सविता रात न्यारी।।

नैन तनहा ढूँढ़ती व्योम को जाती,

पास तेरे हिय संसार प्यारी।।

🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸

*धनेश्वरी सोनी गुल*✍️✍️📚


🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁


*विज्ञात सवैया छंद पर रचना* 


राम ने सारंग को हाथ में लेके,

वाण तीखा करके लक्ष्य साधा।

धूर्त लंकापति बुने जाल को ऐसे,

कौन देखे विधि आधार वाधा।

तीर सीधा जा लगा नर्म नाभी पे,

आह आती मर के प्राण आधा।

हे सुनो देवो मुझे मोक्ष दे देना,

मोक्ष पाने भर से पार बाधा।।


  *परमजीत सिंह कोविद*


🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁

विज्ञात सवैया

प्रेयसी श्रृंगार ऐसा करूंगा मैं,
केश में तारक तेरे सजेंगे ।
काव्य के सौंदर्य होंगे प्रसंशा को,
मेघ के अंजन नैना लगेंगे ।
ये नदी पाजेब पाँवों सजाता हूँ,
फूल आभूषण प्यारा बनेंगे ।
तूलिका से चित्र ऐसे उकेरूँगा,
देखके घायल चंदा रहेंगे ।

*गीता विश्वकर्मा नेह*

🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁

विज्ञात सवैया

श्वास की है डोर टूटी सदा देखो,
*कामना* नित्य रचे भाव काले।
कौन पूछे काल नाचे नचाये क्यों,
आस तोड़े हिय के बंद ताले।
भोर की वो चाँदनी मृत्यु के जैसी,
जीभ से छीन रही क्यों निवाले।
कृष्ण आयेंगें जरा देर तो होगी,
साफ होंगें पर सौभाग्य जाले।।

सौरभ प्रभात 
मुजफ्फरपुर, बिहार


विज्ञात सवैया


बेधता है मीत मेरा मना ऐसे

पंखुरी को अलि ज्यों डंक मारे।

पीर हिय जाने नहीं मीत बैरी क्यों

छूटती है मन की आस प्यारे।

प्रेम की भाषा सिखाऊँ उसे कैसे

व्यर्थ हैं गीत मना भाव सारे।

राह कोई भी सुझाई नहीं दे अब

भाग्य में प्रीत नहीं क्यों हमारे।। 


पूजा शर्मा "सुगन्ध"


🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁


संगिनी साथी सखी सॉंझ शर्माती,

            क्या कहें जो सुर कोई सजाती ।

रागिनी सी राग गाती हमें भाती ,

            सर्वदा बात यही वो बताती ।।

आ रही हैं प्रेम की ऑंधियॉं देखो,

            प्रीति ही आज हॅंसाती रुलाती  ।

जिंदगी का मौत से सामना होगा,

            जान‌ लो मौत हमें ही हराती ।।


*गुलशन खम्हारी'प्रद्युम्न'*✍️


🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁


विज्ञात सवैया


मीत मेरे गीत तेरे मुझे भाते,

प्रीत मेरी अब तेरी मिलो तो।

बंध टूटे लोग रूठे कहें बातें,

स्वप्न मेरे अब तेरे खिलो तो।

साथ तेरा प्रेम मेरा लगे जैसे

चाँद तारे सब संगी चलो तो।

दीप बाती फूल काँटे सदा साथी,

देख मेरे सुख पीड़ा हिलो तो।


अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'

🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁


विज्ञात सवैया


उर्मिला से आज कहते लखन मैं तो,

राम का दास सुनो प्राण प्यारी। 

मै चला वन को मगर सौंपता तुमको, 

माँ,अयोध्या यह आज्ञा हमारी। 

सह सकोगी कष्ट -कंटक न जंगलों के, 

बात यह मान जनक दुलारी। 

मैं करूँ सेवा सदा राम की मेरा, 

प्रण न टूटे यह कोशिश तुम्हारी।। 


____पुष्पा प्रांजलि


🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁


 *विज्ञात सवैया* 


खींच दी दीवारें देखो वहाँ बोलो, आपने और यहाँ क्यों छला है ।

वो धुआँ है राख है देख लो आगे, भूलते सभी वहाँ हाथ जला है ।।

ज्ञान माँगू क्यों किसी से यहाँ बोलो, आप से जीवन मेरा चला है ।

शारदे माँ भाग्य मेरे संवारो यूँ, कष्ट टाले कब देखो टला है ।।


अनिता मंदिलवार सपना

🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁


विज्ञात सवैया छंद


वीर सोनाखान के नित्य रह वन में,

बोलते हैं सब विश्राम त्यागो।

दासता जंजीर अंग्रेज दल बाँधे,

 तोड़ के ये सब बंदूक दागो।

 सर्वदा ही मारना लूटना सारा,

 काम उनका पथ विद्रोह भागो।

थोप के कानून हमको सदा लूटे,

 रक्त में पावक संचार जागो।।


सुरेश कुमार देवांगन 

धमतरी (छत्तीसगढ़)


🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁


विज्ञात सवैया


रोहिणी की आँख थी बंद देखो तो, 

माँ यशोदा तब सो ही रही थी।

 वासु जी पुत्री उठाए रखे धीरे, 

श्याम के पास यशोदा मही थी ।

सूतिका आनंद छाया प्रकाशी ज्यों, 

 बात सारी हँस बाबा कही थी ।

रोहिणी की दासियाँ बोलती हैं जो, 

 सूचना दे तब भारी गही थी।


*अर्चना पाठक'निरंतर'*


🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁


*विज्ञात सवैया*


आज विपदा आ पड़ी है बड़ी भारी,

कष्ट     में      मानव जीवन हमारा।

आपदा। है   घोर खुशियाँ गई सारी,

रोग आया   अब किसका सहारा।।

हैं विवश सारे मनुज पथ नहीं दीखे,

ईश     ही   एक    सहारा  हमारा।।

लोग सब दिखते यहाँ एक आशा में,

होयगा  फिर   खुश  संसार   सारा।।



           *©डॉ एन के सेठी*


🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁

विज्ञात सवैया

राजती यामा भुवन,वन भवन आराम होता।

आदमी को छोडिए,चर अचर अविराम सोता।।

हो थकावट ताजगी,अनमोल पल को कौन खोता।

सादगी से सोइये,फिर जिन्दगी मे कौन रोता।।


कवि- कमल किशोर कमल

हमीरपुर बुन्देलखंड

🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁

वीर पृथ्वी राज चौहान बलशाली,

भाल तलवार धनुष युद्ध ज्ञानी। 

ग्रंथ रामायण सहित ही महाभारत,

ध्यान नियमित गुरुवर ब्रह्मज्ञानी। 

पित्र सोमेश्वर तनुज धीर पाषाणी,

सूर्य सम तेज प्रभावी प्रधानी। 


कंचन वर्मा ‘विज्ञांशी’

🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁

विज्ञात सवैया

राधिका तो आज रूठी निहारे यूंँ, आप आए अब दे दो सहारा।
बोलती है आप भी रूठ जाते क्यों, आप आओ बन साथी दुबारा।
बात तो कुछ भी नहीं थी बता दो तो, आज उसने छिप कर था निहारा ।
तुम यहांँ आते नहीं क्यों अरे बोलो, कर दिया क्यों तुमने भी किनारा ।।

राधा तिवारी "राधेगोपाल"
एल टी अंग्रेजी अध्यापिका
 खटीमा,उधम सिंह नगर
 उत्तराखंड
🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁

*विज्ञात सवैया*

काल घेरे आस बैठा बना घाती,
आज रोगी उर चीखे पुकारे।
कृष्ण रैना बीत जाए कहे काया,
मौन बैठा मन आशा किनारे।।
श्वांस बैठी सी चले क्या जले आत्मा,
शून्य ढूँढें हठ जीते न हारे।
प्राण पंछी क्यूँ नहीं छोड़ यूँ जाए,
आत्म रूठे मन जी को न मारे।।

--दीपिका पाण्डेय'क्षिर्जा'🌷🌷🙏🙏

🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁




🌼🌼 कोविद सवैया 🌼🌼

विधान- २२ वर्ण

यति ११,११ वर्ण पर

२११ २२२ २११ २२,२११ २२२ ११२ २२वाचिक

.    *तीर्थ समझ चित्तौड़*

             °°°°°°°°°°°

पारस हल्दीघाटी हर मँगरी,

वीर प्रसूता मात यही माटी।

भारत मुगलो से भीत हुआ जब,

नाक डुबो मेवाड़ धरा चाटी।

दुर्ग बड़े मेवाड़ी गिरि ऊँचे,

शत्रु हरा कर नाक जहाँ काटी।

वंश महाराणा का सम ईश्वर

तीर्थ समझ चित्तौड़,धरा,घाटी।

.                •••••••••••

......✍©

बाबू लाल शर्मा, बौहरा,विज्ञ

 सिकंदरा,  दौसा,  राजस्थान

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺


कोविद सवैया

पर्वत का सीना है छलनी सा, निर्झर का ये वार सहे भारी ।*
निर्झर पाषाणी राह चुने है, नीर सके पा ये अचला सारी ।
भास्कर ही लाए स्वर्णिम आभा, देख निशा भागी बन बेचारी ।
त्याग भरे भावों को मन धारे, माँ वसुधा श्रृंगारित है प्यारी ।।

         *इन्द्राणी साहू"साँची"*
         भाटापारा (छत्तीसगढ़)    

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺 

कोविद सवैया


शांत धरा बोले मेघ हठी से, तारण हारे हो तुम ही मेरे।

बंधन कैसा ये जोड़ युगों से, संग चले दोनों  हिय के फेरे।

प्रेम समाये हैं बोल रसीले,नित्य लगे जो नूतन से तेरे।

 बूंद पिपासा जो है हर लेती, प्रेम सुधा भेजे सुन के टेरे।


नीतू ठाकुर 'विदुषी'

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

कोविद सवैया

वृष्टि करोगी मेघा कब बोलो
तप्त धरा में धूल उड़े  ऐसे ।
सूख गयी निर्झरणी अब सारी,
प्यास बुझे हैं नीर बिना कैसे ।
भू जलता है धूँ धूँ कर देखो
दग्ध मही में प्राण नहीं जैसे ।
हे बरखा पानी बरसाओ री,
नीर झरो है नाम यथा वैसे ।।

*गीता विश्वकर्मा नेह*

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

प्रीति मुझे दे दो कृष्न सखा हे,

जीवन की वो प्यास बुझाना रे।।

माँग रही नैना ये कब से है,

दर्शन की प्यासी तुम आना रे।।

बाँसुरिया छेडे़ वो धुन प्यारी,

गाकर कान्हा गीत सुनाना रे।।

राह निहारे तेरी अँखियाँ यों,

नैनन में आके बस जाना रे।।

🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸

*धनेश्वरी सोनी गुल*✍️✍️📚


🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺


*कोविद सवैया*

*211 222 211 22,211 222 112 22*

🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸

साजन आ जाओ आज अभी ही,

            नैनन जाने क्यों खटके जैसे ।

प्रेम पिपासी मैं क्यों विरही सी,

            वो जन राहों का भटके जैसे ।।

देखन को मैं तो यूॅं तरसी हूॅं,

            सॉंस यहॉं मेरी अटके जैसे ।

बंजर भू प्यासी ही मरती है,

            जान अभी जाती सटके जैसे ।।

🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸

स्वरचित मौलिक रचना-

*गुलशन खम्हारी'प्रद्युम्न'*✍️


🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺


कोविद सवैया


आज सुनी कान्हा बात सखी री,

प्रेम मिला है लाज लुटाई है।


लोग कहें मीरा प्रेम पगी री,

भक्ति किसी को कौन दिखाई है।


बोल सुने पीड़ा कौन कही री,

नीर नदी ही नैन बहाई है।


एक वही मेरे साथ चले री

झूठ कहे वे श्याम सहाई है।


अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'


🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺


कोविद सवैया


सुंदर सीता का रूप निहारे,

 कंकण शोभा सज्जित आती है।

 मोहक दृश्यों को नैनन धारे,

 मंडप में सीता छवि भाती है।

 मंगलकारी आच्छादित है जो,

 राम कहें सीता सुख लाती है।

 जोड़ रखे जो वीणा उर तारे,

 अद्भुत रानी भी मधु गाती है।


*अर्चना पाठक 'निरंतर'*


🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺


विज्ञात सवैया छंद



 *कोविद सवैया छंद* 


देकर प्राणों की आहुति हम सब,

 देश सदा रक्षा हित हम मरते ।

तीर धनुष तैयारी कर धारण,

 वीर प्रसूता वंदन भू करते। 

साधन है गोंड़ों का यह सारा,

 नित्य हमारे पुण्य धरा भरते।

श्रेष्ठ यहीं है बलिदान हमारा,

 माँग रही है मृत्यु चलो वरते।।


★★★★★★★★★★★★

सुरेश कुमार देवांगन 

धमतरी (छत्तीसगढ़)

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

*कोविद सवैया*

जीवन में आया  संकट सारा,

सृष्टि यही लाचार हुई सारी।

मानव बेचारा जीवन हारा,

बीत रहा जीवन अब लाचारी।।

बाहर अंदर से है सब सूना,

मौसम लाया है अब बीमारी।।

आपद में सारा जीवन आया,

मुक्त सभी होंगे यह तैयारी।।


         *©डॉ एन के सेठी*

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

जोर लगा दीपू जीत मिलेगी,भोर खडा द्वारे शेर सवा का।

मोर बचाओ वर्षा बरसेगी,शोर बडा द्वारे शेर सवा का। 

बाग लगा मारू प्रीत मिलेगी,राग बहा चारू गीत सुनाना।

वायु बही थारू पौध सुखाये,आग बही भारू बौर बचाना।।


कवि- कमल किशोर कमल

         हमीरपुर बुन्देलखंड।।

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

जीवन है सुख दुख की नगरी सा,

कष्ट भले हों लेकिन हैं ख़ुशियाँ। 

भोर नई शीतल छाँव यहाँ है,

धीर रखें ज्यों राह मिलें कलियाँ। 

एक किरण भी तम को नष्ट करेगी,

आस रखें कर्मों पर हम सखियाँ। 

प्रेम मगन जब संसार रहेगा,

प्रेम सुरों से धन्य बने दुनियाँ। 


कंचन वर्मा ‘विज्ञांशी’

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

कोविद सवैया


यूँ हम सब भी आ साथ रहे तो, आज नहीं फिर किसका डर होना।

आ हम अपनी ही बात करें तो, धीर नहीं है हमको अब खोना‌।

तो कर लो अब कुछ बात यहांँ की, हाथ रहे सबको ही अब धोना।

गीत गजल भी लिखना सिखलादो, आज नहीं अब कोई भी रोना।।


राधा तिवारी "राधेगोपाल"

एल टी अंग्रेजी अध्यापिका

 खटीमा,उधम सिंह नगर

 उत्तराखंड

🙏🙏🙏

Wednesday 2 June 2021

राधेगोपाल छंद शिल्प विधान और उदाहरण


 राधेगोपाल छंद 

■ राधेगोपाल छंद का शिल्प विधान ■ 

वार्णिक छंद है जिसकी मापनी और गण निम्न प्रकार से रहेंगे यह दो पंक्ति और चार चरण का छंद है जिसमें 6,8 वर्ण पर यति रहेगी। सम चरण के तुकांत समान्त रहेंगे इस छंद में 11,14 मात्राओं का निर्धारण 6, 8 वर्णों में है किसी भी गुरु को लघु लिखने की छूट है इस छंद में लघु का स्थान सुनिश्चित है। लघु जहाँ है वहीं पर स्पष्ट आना चाहिए। मापनी का वाचिक रूप मान्य होगा।

222 212

222 212 12

मगण रगण

मगण रगण लघु गुरु (लगा)

उदाहरण :- 

(1)

भूखा हो पेट जो, दो हीरे लाख दान में।

खाता है कौन यूँ, रत्नों के भोज्य मान में।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

(2)

लाई पाती वही , संदेशा आज नेह का।

पीड़ा वैराग्य में, भूले जो कष्ट देह का।

आना तो था उन्हें, पाती ये धन्य सी हुई।

भूले हैं वो मुझे, पूछें यूँ हाल गेह का।।


संजय कौशिक 'विज्ञात'

🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀

(1)
कर लो तुम आज तो, बातें हमसे अभी सनम।
खुश हो मन में सदा,  बोलो हमदम सभी प्रियम।
आती *पीड़ा* रही, करते सब रोज सामना ।
मन की सुन लो जरा,राधे लेती यही कसम।।

(2)
भक्तों को दूर से,करते हो याद आप भी।
हरते हो आप तो,दुख पीड़ा श्राप पाप भी।
आ करके देखलो,जनता भी आप है दुखी।
नाहक करने लगा,माला ले आज जाप भी।।


राधा तिवारी "राधेगोपाल"
एल टी अंग्रेजी अध्यापिका
खटीमा,उधम सिंह नगर
उत्तराखंड

🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀

व्याकुल है ये धरा , पीड़ा अति व्योम भी सहे ।

झंझावाती हवा, देखो चारो दिशा बहे ।

करिए मिलकर सभी, उत्तम सा ही प्रयास वो ।

*पीड़ा* सबकी मिटे, व्यापित बस शांति ही रहे ।।


सहकर *पीड़ा* सदा, नारी निज कर्म पालती ।

रक्षित परिवार हो, आँचल शुभ छाँव डालती ।।

दिखलाती वो नहीं, *पीड़ा* मन की कभी कहीं ।

सहकर हर कष्ट वह, घर आँगन को सँभालती ।।


मूरत है त्याग की, अचला सी धीर धारती ।

नारी परिवार हित, जीवन मन प्राण वारती ।

*पीड़ा* अतुलित सहे, पर मुख से कुछ न बोलती ।

नैहर ससुराल में, दोनो ही वंश तारती ।।


         *इन्द्राणी साहू"साँची"*

         भाटापारा (छत्तीसगढ़)     

🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀

मधुबन आओ करें, बातें कुछ नेह प्रीत की।
अब क्या मुझ में रही, मेरी पीड़ा न रीत की।
जग झूठा है सही, तुम से लागी लगन प्रभू।
बाजे है मुरलिया, धुन मीठी आज जीत की।।

कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀

मेरी पीड़ा थकी, साथी ढूँढे कभी कभी।

गायें झूमें चलो, छाया बोली अभी अभी।

मीठी बोली सुनी, छाई प्यारी घटा हवा।

पैरों में पैंजनें, बाँधी नाची तभी तभी।


नीतू ठाकुर 'विदुषी'

🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀

आओ प्रिय अब बसो,मेरे हिय नेत्र झील में।

मैं नीरस हो रही,सागर इस नेह नील में।

ये आशा मर रही,विरहन मैं लोक लाज से।

तन फॅंसता जा रहा,मानो ज्यों भाव कील में।।


    परमजीत सिंह 'कोविद'

🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀

रख प्रभु का ध्यान अब, पीड़ा भी दूर हो जभी।

मिलता है ज्ञान जब, होंगे दुख दूर भी सभी।

प्रभु जब हैं पास तो , लो प्रभु आशीष भी मिले।

 रख प्रभु के ध्यान जब , दुर्जन से दूर हो अभी।

अजीत कुमार कुम्भकार 'निर्भीक'

🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀

हारा मन हार के, कहता है चीत चोर प्रिय। 

नम कर के आँख को, करता जग रोज शोर प्रिय।। 

पीडा ही प्रेम है, अभिलाषा में बँधे रहे।

रंगीली याद में, होती आनंद भोर प्रिय।। 


✍️चमेली कुर्रे 'सुवासिता'

🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀

औषधि तुम घाव मैं,रिसता क्यूँ नेत्र पीर से।

लिख नभ को पत्र फिर,भेजो उर अब्धि तीर से।

बिजली सी कौंधती, भू हृद अरु व्योम काँपता।

नम पत्री भीगती,बरसे घन मेघ धीर से।।


दीपिका पाण्डेय 'क्षिर्जा'

🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀

कान्हा कान्हा जपूँ, मन में बसते सदा वही।

जोगिन उनकी बनूँ, सोचूँ मैं बस सदा यही।।

मेरे प्रीतम सुनो, आ जाओ एक बार तो।

भावों के पुष्प ये, करतीअर्पित यहाँ रही।।


अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'

🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀

राधा रानी कहें,रूठे हो नंदलाल क्यों।

मटकी को तोड़ के,बदली है चाल-ढाल क्यों।

झूठा तूने रचा,सारा ही रंग-ढंग यह।

जानूँ लीला सभी,चलता है झूठ चाल क्यों।

*अनुराधा चौहान'सुधी'*

🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀

गीत

राधे गोपाल हरि

आपस में आज यूँ ठनी।

वृन्दावन हरि रमें

राधाजी छाँव वट घनी।।


झूले पर रार करि

राधे गोपाल द्वय लड़े

पहले तू झूल अलि

दोनो ही पेड़ चढ़ अड़े

गोपी हँसती रही

बातो में बात अब तनी

राधे.................ठनी


मुरली झट छीन कर

राधे जी कान खींचती

गिरधर तब खूब हिय हँसे

राधा तब वक्ष पीटती

पुरवाई वायु चल

वर्षा तरु पात छनी

राधे............ठनी


ग्वाले भी हँस रहे

ताली दे दे नचे हँसे

राधे गोपाल हरि

उन सबके बीच द्वय फँसे

अपने यह सोच मन

जग में राधा बहुत धनी

राधे....................ठनी

बाबूलाल शर्मा ,बौहरा 'विज्ञ'

🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀

राधे राधे जपो,

त्रैतापों की समाप्ति हो।।

 कान्हा कान्हा कहो।

 कान्हा की प्रीति प्राप्ति हो।।


 मीरा का था  वही,

वो ही था संत सूर का ।।

सारा संसार है 

कृष्णा,तेरा न और का।।

कृष्ण मोहन निगम जी

🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀

*विधा गीत* 

*विषय मुश्किल*

पेड़ों को काट कर, सूखी कर दी यहाँ नमी।

संकट का काल है, जगती तो है विवश थमी।।


ढूंँढोगे आज तो,तुम देवों को यहाँ वहाँ।

पट खुलता ही नहीं,जाकर देखा कहांँ कहांँ।

भाषा बीमार है,आँखों में है गरम नमी।

संकट का काल है, जगती तो है विवश थमी।।


मरते हैं लोग अब,कैसा है रोग यह दिखा।

तुम भी तो देख लो, विधना ने भाग्य क्या लिखा।

वह भी बतला रहा, पूरी हो किस तरह कमी।

संकट का काल है, जगती तो है विवश थमी।।



चलकर कुछ दूर तक, साथी दो साथ भी कभी।

आया जो काल है, जाए यह बोलते सभी।।

राधे भी आज तो, क्यों कर इसमें रहे रमी ।

संकट का काल है, जगती तो है विवश थमी।।


राधा तिवारी "राधेगोपाल"

एल टी अंग्रेजी अध्यापिका

 खटीमा,उधम सिंह नगर

 उत्तराखंड



रमेश छंद शिल्प विधान और उदाहरण

 


रमेश छंद 

■ रमेश छंद का शिल्प विधान ■ 

वार्णिक छंद है जिसकी मापनी और गण निम्न प्रकार से रहेंगे यह दो पंक्ति और चार चरण का छंद है जिसमें 6,8 वर्ण पर यति रहेगी। सम चरण के तुकांत समान्त रहेंगे इस छंद में 11,14 मात्राओं का निर्धारण 6, 8 वर्णों में है किसी भी गुरु को लघु लिखने की छूट है इस छंद में लघु का स्थान सुनिश्चित है। लघु जहाँ है वहीं पर स्पष्ट आना चाहिए। मापनी का वाचिक रूप मान्य होगा।

122 222

122 122 22

यगण मगण

यगण यगण गुरु गुरु (गा गा)

उदाहरण : -

बुलाके देखो तो, हमारे प्रभो आयेंगे

मिलेंगे भोले जी, उन्हें जो इन्हें ध्याएँगे।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀

 *कुब्जा वाक* 

 ********

१.

हरो पीड़ा मोहन, करो आस हिय की पूरी।

हरो बाधा मेरी, बनाओ न ऐसे दूरी।।

२.

तुम्ही मेरे पालक, तुम्ही मित्र मन के प्यारे।

भरो खुशियां जीवन, हरो त्राण मेरे सारे।।

३.

बनाकर अब अपना, बनो मीत हे अभिमानी।

उठाकर संभालो, धरो ध्यान मैं अज्ञानी।।

४.

हजारों हैं कमियाॅं, मुझे छोड़के मत जाना।

दयाकर कुब्जा पर, यहीं भोग आकर खाना।।

५.

अभागन थी मैं तो, सुता थी मरी फिर मेरी।

बनाओ अब सुंदर, लगाओ नहीं अब देरी।।


     *परमजीत सिंह कोविद*

🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀

*भोर*

बुलाती हैं काली, सुहानी घटाएँ प्यारी।

खुशी से है झूमी, मयूरी रिझाती न्यारी।।


गुलाबों की डाली, नया गीत जैसे गाये।

पपीहा की बोली, धरा का जिया हर्षाये।।


नई आशा देती, उठी भोर जैसे योगी।

मिटाती कष्टों को, कहे क्यों बने हो भोगी।।


सुनाते है गाथा, नदी ताल पर्वत उपवन।

सुगंधित करते है, व्यथा से भरा हर तन मन।।


नीतू ठाकुर 'विदुषी'

🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀

आँधी

चली ऐसी आँधी, हिली नींव श्रद्धा वाली ।

कली टूटी कोई, रहा देखता ही माली ।।


धरा में है व्यापी, बुराई महामारी सी ।

न कोई विश्वासी, लगे सत्यता भारी सी ।।


बिछाए हैं काँटे, नहीं फूल से है यारी ।

समाई है कुंठा, मरी भावनाएँ सारी ।।


न टूटा है झूठा, सदा सत्य ही क्यों हारा ।

मिले कोई ऐसा, बने जो सहारा प्यारा ।।


घटाएँ काली सी, दुखों की घिरी है ऐसे ।

डराते कष्टों से, मिले मुक्ति बोलो कैसे ।।


         *इन्द्राणी साहू"साँची"*

         भाटापारा (छत्तीसगढ़)     

🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀

पुरवा

चली पुरवा ठंडी,सुहानी घटा है छाई ।

पड़ी बूँदें  पहली,सुनाती पवन है आई।।

२.

नदी बहकी बहकी,बहे झूमती सी जाए।

झरे निर्झर मोती,गिरे पर्वतों से भाए।

३.

पपीहा भी बोले ,दिखे मोर नाचे गाए।

धरा होती हर्षित,खिले फूल जो मुस्काए।

४.

सुनो कान्हा विनती,हरो पीर सबकी अब की।

बने रोगी सारे,करो आस पूरी कब की।।

५.

लुभाते हो मन को,दिखाते सदा ही सपने।

जरा सा हो दर्शन,बनो तो कभी तुम अपने।।

 

अभिलाषा चौहान 'सुज्ञ'