Friday 17 April 2020

विज्ञात छंद पर चली छंदाचार्यों की लेखनी





विज्ञात छंद में मेरी रचना  आपकी सेवा में प्रेषित है :-

 रचना का शीर्षक :-
  भक्ति :  आस और  प्यास
   छंद  - विज्ञात छंद
 कवि भारत भूषण वर्मा
       -------------------

 काव्य नया रचा जाए ।
 जीवन आस बंधाए  ।।
 पाप डिगा नहीं पाए  ।
 दोष रुला नहीं पाए  ।।

 योग जहान को जोड़े  ।
 भोग महान को तोड़े  ।।
 तेज लगाम के घोड़े   ।
 आस लिए सभी दौड़े ।।

 सावन भी यहां प्यासा ।
  देकर आब की आशा ।।
आस कभी नहीं टूटे   ।
 डोर कभी नहीं छूटे  ।।

 गीतमयी कहे गीता   ।
 कर्म करे तभी जीता ।।
 'भूषण' आस ये मेरी  ।
 मालिक प्यास है तेरी ।।

  ------ भारत भूषण वर्मा
  असंध (करनाल) हरियाणा
   ( स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित)

विज्ञात छंद पर हिन्दी के डॉक्टरेट की समीक्षा



विज्ञात छंद पर छंदाचार्यों की समीक्षा :-








*श्री संजय कौशिक* ' *विज्ञात' द्वारा आविष्कृत विज्ञात छंद की समीक्षा*
     समीक्षक- डॉ सरला सिंह "स्निग्धा", दिल्ली
            
          छन्द शास्त्र के विद्वानों में आदरणीय
गुरु संजय कौशिक "विज्ञात"जी का नाम  भी
शामिल हो गया है। छन्द सहज नहीं है और एक नये छन्द का निर्माण तो और भी कठिन कार्य है उन्होंने इतने सहज ढंग से विज्ञात छन्द का निर्माण किया की सभी दंग रह गये। इस समय  छंदशाला के माध्यम से कुछ लोग नवीनतम छंदों पर अनुसंधान कार्य कर रहे हैं लेकिन इस क्षेत्र में  नवीनतम छंद विधान का कार्य अपेक्षाकृत बहुत ही कम है । कवि राधेश्याम द्वारा राधेश्यामी छंद का विधान इसी श्रेणी में ही आता है । मुझे यह बताते हुए बहुत ही खुशी का अनुभव हो रहा है कि आदरणीय गुरुदेव श्री संजय कौशिक 'विज्ञात' जी ने  "विज्ञात छंद" का सृजन किया है और उसके शिल्प विधान को भी बड़ी तकनीक के साथ प्रस्तुत किया है । वार्णिक छंदों की श्रेणी में समाहित किए गए इस छंद में कुल 13 मात्राएं है - भगण (211), रगण (212) , गुरु (2) ,गुरु (2) के संयोजन से निर्मित यह छंद  बहुत ही सुन्दर  है । इस तुकांत छंद का प्रति चरण समतुकांत है । 'कलम की सुगंध' साहित्यिक मंच के लगभग 150 रचनाकारों ने इस सृजन की घड़ी को उनके साथ साथ जिया है ।उनके इस प्रयास की सराहना तथा सहर्ष  स्वीकृति देते हुए इसे "विज्ञातछंद" का नाम दिया गया तथा इसी छन्द पर अनेकानेक रचनाएं लिखी गयीं।
        मैंने भी इसी छंद में दो-तीन रचनाएं लिखी है । मैं आदरणीय श्री संजय कौशिक जी के इस प्रयास की सराहना करती हूं ।आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास के साथ कामना करती हूं की आगे भविष्य में भी नवीन नवीन छन्दों का निर्माण करें । साहित्य जगत के महान छन्दकारों में उनका नाम  स्वर्णाक्षरों में लिखा जाए यही मेरी शुभकामना है।
     
डॉ सरला सिंह "स्निग्धा"
दिल्ली


*श्री संजय कौशिक* ' *विज्ञात' द्वारा आविष्कृत विज्ञात छंद की समीक्षा*
 *समीक्षक :- भारत भूषण वर्मा*
     --------------------------
 काव्यशास्त्र में पिंगल मुनि का नाम बड़े आदर से लिया जाता है जिन्होंने छंद शास्त्र का प्रणयन किया और काव्य को विभिन्न प्रकार के बंधनों से बांधने के लिए जिस साधन का प्रयोग किया वे छंद कहलाए । हमारे संस्कृत काव्य-शास्त्र ही हिंदी काव्यशास्त्रग्रंथो के आधारस्तंभ माने जाते हैं ।  हिंदी साहित्य में आदिकाल, भक्तिकाल, और रीतिकाल के दौरान  अवधी और ब्रजभाषा के प्रभावस्वरूप अनेक छंदों का जन्म हुआ ।  व्यापक साहित्य लेखन के दौरान दोहा ,रोला, छप्पय, कवित्त, सवैया , कुंडलियां उल्लाला , चौपाई इत्यादि छंदों में महान काव्य-ग्रंथों का सृजन हुआ । तत्पश्चात्  आधुनिक युग में भी छंदोबध्द रचनाएं लिखी गई । फिर नई कविता के दौरान छंदरहित काव्य का दौर भी शुरू हुआ । लेकिन छंदबद्ध काव्य का प्रभाव शाश्वत एवं स्थाई साबित हुआ । वर्तमान समय में छंद मर्मज्ञ साहित्यसेवी छंदशाला में नवीनतम छंदों का अनुसंधान कार्य कर रहे हैं लेकिन इस क्षेत्र में  नवीनतम छंद विधान का कार्य अपेक्षाकृत बहुत ही न्यून है । कवि राधेश्याम द्वारा सृजित राधेश्यामी छंद का विधान इसी श्रेणी में ही आता है । मुझे यह बताते हुए हर्ष की अनुभूति हो रही है कि हमारे साहित्य जगत में एक नवीन छंद की खोज करने में श्री संजय कौशिक 'विज्ञात' जी का नाम भी जुड़ गया है । जिन्होंने विज्ञात छंद का सृजन किया है और उसके शिल्प विधान को भी बड़ी तकनीक के साथ प्रस्तुत किया है । वर्णिक छंदों की श्रेणी में समाहित किए गए इस छंद में कुल 13 मात्राएं है - भगण (211), रगण (212) , गुरु (2) ,गुरु (2) के संयोजन से निर्मित इस छंद की छटा निराली है । इस तुकांत छंद का प्रति चरण समतुकांत है । 'कलम की सुगंध' साहित्यिक मंच के लगभग 150 साहित्य-सृजको ने  उनके इस प्रयास की सराहना की है तथा सहर्ष इसे स्वीकृति भी प्रदान करते हुए इसी छंद में सृजन भी किया है ।
 मैंने भी इसी छंद में एक रचना का प्रणयन किया है । मैं आदरणीय श्री संजय कौशिक जी के इस प्रयास की सराहना करता हूं ।भविष्य में भी उनसे नवीनतम प्रयोगों की कामना करते हुए उन्हें शुभकामनाएं प्रेषित करता हूं ।
     धन्यवाद सहित,
       --भारत भूषण वर्मा
 असंध (करनाल) हरियाणा



Thursday 16 April 2020

विज्ञात छंद आधारित नवगीत


विज्ञात छन्द 
नव गीत 
11/4/2020
8/211 212  22  (13 )

बेसुध सी हुई वाणी 
खण्डित हैं धरा शीणा 
भ्रामक हो रही आशा 
झंकृत हैं तनी वीणा ॥ 

शोडित षोडषी होगी 
रीत गईं भरी बोली 
लूट लगे सभी प्रीती 
रूठ गईं नहीं बोली 
टूट करें झरे मोती 
भेद बिना चुभे पीड़ा 
भ्रामक  हो रही आशा 
झंकृत हैं तनी वीणा । 

नैन झुके रहे भारी 
होठ सिले भरें जोशी 
राह निहारती हारी 
मादकता गईं होशी 
प्यार कु प्यार रूखा सा 
चीख़  रही दुखी श्रींणा 
भ्रामक  हो रही आशा 
झंकृत हैं तनी वीणा ॥ 

लौट रही तभी देखा 
भूल गईं सभी बीता 
सन्मुख देख खो जाना 
भाव तभी मनो रीता 
आनन सा झुका लाई 
आँख भरें रही क्रीड़ा 
भ्रामक हो रही आशा 
झंकृत हैं तनी वीणा ॥ 

डॉ़ इन्दिरा  गुप्ता यथार्थ

Sunday 12 April 2020

विज्ञात छंद आधारित ग़ज़ल और गीतिका

विज्ञात छंद 

कलम की सुगंध छंदशाला में आदरणीया अनिता मंदिलवार 'सपना' जी के संचालन में विज्ञात छंद आधारित ग़जल और गीतिका का सृजन किया गया। प्रस्तुत हैं कुछ रचनाएँ......

अमिता श्रीवास्तव 'दीक्षा' जी: विज्ञात छंद आधारित ग़ज़ल
काफिया आ
रदी़फ देगा 

211,212,22

कत्ल करे, मिटा देगा,
 इश्क़ यही सजा देगा ।

 कौन इमान रखता है ,
 कौन तुझे दगा देगा ।

शख्स अमीर वो होगा,
फ़र्ज़ सभी चुका देगा।

आज फिगार दिखता है,
कौम इसे मिटा देगा ।

वक़्त अगर लगे मुश्किल,
मांग तुझे  खुदा देगा  ।

 देख खड़ा उजाला है ,
 इल्म तुझे सिखा देगा।

दोस्त हताश क्यों होना ,
अश्क समय सुखा देगा।

अमिता श्रीवास्तव
स्वरचित

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चमेली कुर्रे सुवासिता जी: 
दिनांक -12/04/2020
विधा -विज्ञात छंद आधारित गज़ल
काफिया -आता 
रदीफ- है 
मापनी  *21  12   12  22*

रोज मुझे रिझाता है,
वो दिल को चुराता है।1।
***
 सागर में छिपा मोती,
 प्यास सदा बढ़ाता है।2।
***
प्रेम दिया जला देता,
जो तम को मिटाता है।3।
***
गंध बना घुला है वो,
सोच वही जगाता है।4।
 ***
सांस बना रमा है जो,
बात नई बनाता है ।5।
***
आज सुवासिता सोचे, 
साथ वही निभाता है।6।
          🙏🙏🙏
✍चमेली कुर्रे 'सुवासिता'
जगदलपुर बस्तर (छत्तीसगढ़ )

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नीतू ठाकुर 'विदुषी' जी : दिनांक: 12.4.2020
विज्ञात छंद आधारित ग़ज़ल
मापनी- 21 12 12 22

वक़्त वफ़ा निभा पाता।
दौर रुला नही जाता।।

पुष्प जिसे दिया जाके,
शूल वही बना आता,

ढूँढ रही जिसे राहें,
सावन गीत वो गाता

बात सुने कहाँ कोई,
मौन कहा नही जाता।

स्वप्न बुझे हुए सारे,
दीप जला नहीं पाता

गैर उसे कहूँ कैसे,
नाम दिया नही जाता।

वो विदुषी मिलेगा ही
भाग्य लिखा कहाँ जाता।

नीतू ठाकुर 'विदुषी'

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मीटर - 211 212 22

आज नहीं कहूँगी मैं।
रात गयी, सहूँगी मैं।।

क्यूँ तुमने किये वादे।
मूक बनी रहूँगी मैं।।

जान तुम्हें दिये बैठी।
नीर बनी बहूँगी मैं।।

चाह नहीं तुम्हें पाऊँ।
हाथ सदा गहूँगी मैं।।

आज यही कहे वृंदा।
अग्नि हुई दहूँगी मैं।।

अनुपमा अग्रवाल 'वृंदा '

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~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा 'विज्ञ'
.         *गज़ल*
.           °°°°°°
.   २११   २१२   २२
८वर्ण °°°°°°°°१३मात्रा
......(आ, आया)

रोग  यहाँ वृथा  आया,
भारत क्यूँ चला आया।

सत्य  बता  हमें  कैसे,
चक्कर में चढ़ा आया।

विश्व विजेत हो जैसे
पागल, क्यूँ भला आया।

चीन  जले चले  भारी,
शीश छिपा भगा आया।

जीवट भारती मानें,
मूरख तू फँसा आया।

सूरज साथ  है मेरे,
अग्नि लिए तपा आया।

स्वेद श्रमी दुलारे हैं
पंथ कहाँ सखा आया।

ताप चढे हमें देखो
नर्मद में नहा आया।

शत्रु सदा  डरे हारे,
सोच भरे गला आया।

काल अकाल भी काँपे,
व्यर्थ चला टला आया।

'विज्ञ" विकास की सोचे,
स्वप्न  जगा महा आया।
.         👀👀
✍©
बाबू लाल शर्मा "विज्ञ"
सिकंदरा, दौसा, राजस्थान
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विज्ञात छन्द
गजल
मीटर- 211 212 22
*
ताल  वहीं भरा  होगा
अश्क़ जहाँ बहा होगा

कोशिश आंधियों ने की
ख़्वाब रुला रहा होगा ।

आज छँटी उदासी है
कुछ ख़त ने कहा होगा।

दाँव चले सियासी जो
ज़ख्म निशाँ सहा होगा।

ये निकला जनाज़ा है
दुर्ग कहाँ ढहा होगा ।

मौसम का तकाज़ा है
इश्क़ रुला रहा होगा।

आँगन चाँद खिला होगा
रोशन ये जहां  होगा।।

अनिता सुधीर आख्या

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मंच को नमन
211 212 22
*मापनी पर ग़ज़ल*

मैं पहचान बैठी हूँ।
ये अब जान बैठी हूँ ।।

मैं कब की उसे भूली,
भूल कर मान बैठी  हूँ ।।

वो बस आ गया लेने,
ले अरमान बैठी हूँ।।

है कुछ तो नया होगा ,
मैं परवान बैठी हूँ ।।

हूँ अब तो निभाने को,
ले विषपान बैठी हूँ ।।

राधा तिवारी"राधेगोपाल"
खटीमा
उधम सिंह नगर
उत्तराखंड

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विज्ञात छंद आधारित ग़ज़ल
21 12 1 22
वर्ण 8

भार अज़ाब ज्यों ढ़ोता
जीवन खार क्यों ढ़ोता

आतिश आब ए ज्वाला
चाह उरूज़ जों बोता

आज़िज आब आईना
आफ़त काल यों रोता

भूल अलीम बाज़ीचा
चैन अज़ीज़ त्यों सोता

आँच बुझी कुदेरे जो
कौन बिमारियों न्योता

चोट दिए कभी गैरो
आप शताब्दियों रोता।

आज नहीं बचा 'प्रज्ञा'
आफ़त बादियों जोता।।

कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

आज़ाब=पीड़ा उरूज़= उत्थान
आज़िज=लाचार अज़ीज़=प्रिय
अलीम=सर्वज्ञ बाज़ीचा=खेल, खिलौना ,बादियों =कटोरा

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सादर समीक्षार्थ हेतु🙏
पुनः प्रेषित
मंच के मान्य विधानानुसार एक छोटा सा प्रयास!
211 212 22
हिंदी ग़ज़ल [विज्ञात छंद आधारित]

कौन कहे हज़ारी सी
बात अजीब भारी सी।

काग लगाय फेरा है
कोयल रोय प्यारी सी।

आज दिखे यहाँ ऐसे
शक़्ल समेत हारी सी।

देख यकीन है माना
बात चुभी कटारी सी।

भूल करो न कोई भी
बात लगे न गारी सी।

वो रच के ख़ुदा बैठा
सृष्टि समग्र न्यारी सी।

पोंछन को सभी आँसू
"रीत" चली हमारी सी।
----अनिता सिंह "अनित्या"

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सादर समीक्षार्थ
विज्ञात छंद पर आधारित ग़ज़ल
211 212 22
क़ाफ़िया *आ*
रदीफ़ *पूछो*

क्यों रब है खफ़ा, पूछो
क्या कर दी ख़ता, पूछो।

खोकर रब्त क्या पाया
क्यो गम है सज़ा, पूछो।

शोर दबा, किया ज़ख्मी
क्यों बदली फ़िज़ा, पूछो।

क़त्ल किया, अजा रोई
क्यों दिखती क़ज़ा, पूछो।

खुल्द बसे, अना टूटे
है 'निधि' भी रज़ा, पूछो।

-निधि सहगल 'विदिता'

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Friday 10 April 2020

विज्ञात छंद नामकरण : संजय कौशिक 'विज्ञात'

आज दिनांक 10.04.2020 की रात कलम की सुगंध छंदशाला में आदरणीया अनिता मंदिलवार 'सपना' जी के संचालन में आदरणीय संजय कौशिक 'विज्ञात' जी द्वारा लिखित छंद को विज्ञात छंद के नाम से सुशोभित किया गया। रात 8:16 मिनट पर कलम की सुगंध छंद शाला में आदरणीय बाबूलाल शर्मा बौहरा 'विज्ञ' जी ने विज्ञात छंद की घोषणा की जिसके साक्षीदार 150 से अधिक कलमकार बने। इस विशेष अवसर पर सभी ने अपनी प्रतिक्रिया द्वारा अपनी खुशी को व्यक्त किया। लगभग 4 घंटे चले इस कर्यक्रम में कई कलमकारों ने विज्ञात छंद पर सुंदर सृजन किया। विज्ञात छंद के जनक आदरणीय संजय कौशिक 'विज्ञात' जी मंच संचालिका अनिता मंदिलवार 'सपना' जी, नीतू ठाकुर 'विदुषी' जी, साखी गोपाल पांडा जी, बाबूलाल शर्मा 'विज्ञ'जी,बोधन राम निषादराज 'विनायक' जी, इंद्राणी साहू 'साँची' जी, सुशीला जोशी 'विद्योत्मा' जी, अर्चना पाठक 'निरन्तर' जी
के साथ उन सभी कलमकारों को बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं जिन्होंने इस ऐतिहासिक पल को साथ जिया 💐💐💐💐

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  *कलम की सुगंध, छंदशाला,संचालन मंडल*

.      *पंच परमेश्वराय:नम:*

मंच संचालिका छंदशाला
अनिता मंदिलवार 'सपना'
नीतू ठाकुर 'विदुषी'
साखी गोपाल पांडा
बाबू लाल शर्मा *विज्ञ*
बोधन राम निषादराज 'विनायक'
इंद्राणी साहू 'साँची'
सुशीला जोशी 'विद्योत्मा'
अर्चना पाठक 'निरन्तर'

छंद शाला के प्रबुद्ध छंदकारों की विवेचना,समीक्षा व सहमति के आधार पर आज हिन्दी साहित्य हेतु एक नवीन छंद को सहर्ष मान्यता प्रदान की जाती है।

सहमति प्रदत्ता

१. बाबू लाल शर्मा,
२ स्नेहलता "स्नेह"
३.अनिता मंदिलवार सपना
४.चमेली कुर्रे 'सुवासिता'
५.धनेश्वरी धरा
६.डॉ अनीता रानी भारद्वाज अर्णव
७.कमल किशोर"कमल" हमीरपुर बुन्देलखण्ड।
८.राधा तिवारी"राधेगोपाल" उत्तराखंड
९.इन्द्राणी साहू साँची
१०.नीतू ठाकुर 'विदुषी'
११.अनुपमा अग्रवाल 'वृंदा'
१२. बोधन राम निषादराज
१३.केवरा यदु"मीरा"
१४.डॉ सरला सिंह 'स्निग्धा'
१५.अनंत पुरोहित अनंत
१६.कन्हैया लाल श्रीवास *आस*
१७.कृष्ण मोहन निगम
१८.वंदनागोपाल शर्मा *"शैली"*
१९.कुसुम कोठारी "प्रज्ञा"
२०. गीतांजलि ‘विधायनी’
२१.अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'
२२. सरोज दुबे 'विधा'
🌞
छंद.  🦢 *विज्ञात छंद* 🦢
.🌷🌷🌷🌷🌷🦚🦚🌷🌷🌷🌷🌷
विधान.. यह वर्णिक छंद है
८ वर्ण १३ मात्रिक
मापनी.. २११ २१२ २२
दो दो चरण सम तुकांत
छंद आविष्कारक- *श्री संजय कौशिक "विज्ञात"*

आज दिनांक १०.०४.२०२०
बाबू लाल शर्मा *विज्ञ*
.       वास्ते✍
*समस्त सदस्य गण*
*कलम की सुगंध छंदशाला*

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इस अवसर पर विज्ञात छंद पर सृजन करने वाले कलमकारों की सूची :-

समीक्षक :
अनिता सुधीर 'आख्या'
चमेली कुर्रे 'सुवासिता'

विज्ञात छंद के प्रथम अवसर पर सृजन कर्त्ता

1. अनिता मंदिलवार सपना
2. धनेश्वरी देवाँगन "धरा "
3. चमेली कुर्रे 'सुवासिता'
4. अनिता सुधीर आख्या
5. मनोरमा जैन विभा
6.  कृष्णमोहन निगम
7. गीता द्विवेदी
8. सुशीला साहू "विद्या"
9. डॉ सरला सिंह स्निग्धा
10. गीतांजलि ‘विधायनी’
11. नीतू ठाकुर ' विदुषी'
12. बाबू लाल शर्मा
13. अनुपमा अग्रवाल 'वृंदा'
 14. अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'
15. अनुराधा चौहान'सुधी'
16. सुशीला जोशी-विद्योत्मा ,मुजफ्फरनगर
17. वंदनागोपाल शर्मा *"शैली"*
18. वंदना सोलंकी *मेधा*
19. गीता उपाध्याय *गोपी*
20. बोधन राम निषादराज *"विनायक"*
21. राधा तिवारी *"राधेगोपाल"*
22. इन्द्राणी साहू "साँची"
23. सुनील वाजपेयी *शिवम्*
24. अर्चना पाठक 'निरंतर'
25. मीना भट्ट
26. चंद्र किरण शर्मा
27. पूनम दुबे"वीणा"
28. डा० भारती वर्मा बौड़ाई
    29. श्रीमती कृष्णा पटेल
30. सरोज साव कमल
31. केवरा यदु"मीरा"
32. कमल किशोर "कमल" हमीरपुर बुन्देलखण्ड।
33.  डॉ श्रीमती कमल वर्मा नलिन
34. कन्हैया लाल श्रीवास *आस*
35. सरोज दुबे 'विधा'

अनिता मंदिलवार सपना
कलम की सुगंध छंदशाला

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मंच संचालिका आदरणीया अनिता मंदिलवार 'सपना' जी के सुझाव .....

इस विशेष छंद का नामकरण कर सकते हैं क्या

कि इस छंद को आदरणीय संजय कौशिक  विज्ञात  गुरू जी  के माध्यम से ही लिखा और पढ़ा है तो इसका नामकरण *विज्ञात छंद* किया जा सकता है ।

आदरणीय बाबूलाल शर्मा विज्ञ जी, आदरणीय राजकुमार धर द्विवेदी जी, आदरणीय साखी गोपाल पंडा भाई जी, आदरणीय बोधन राम निषाद राज जी, आदरणीया इन्द्राणी साहू साँची जी ।

आप सभी की सहमति हो तो इस छंद का नामकरण किया जा सकता है ।

अपनी राय जरूर देवें ।

इंतजार है आप सभी का ।

आपकी स्वीकृति मायने रखेगी ।

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~~~~~----- बाबूलालशर्मा 'विज्ञ'

*विज्ञात छंद विधान*
८ वर्ण , १३ मात्राएँ होती हैं।
प्रति दो चरण समतुकांत
गण  : भगण रगण गुरु गुरु
२११  २१२   २२
.🦢 *कामना*  🦢
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सागर पार  से आया।
रोग वही यहाँ  लाया।
विश्व विनाश ये जाने।
मानवता  नहीं  माने।

नाशक  भावना भारी।
युद्ध   विषाणु  तैयारी।
सत्य  सुनीति को भूले।
स्वार्थ अनीति के झूले।

फैल  रही  महामारी।
भारत  है  सदाचारी।
जीत  सदा  रहे तेरी।
आनव  कामना मेरी।

*मानस  भाव विज्ञातं*।
*आज हुलास संज्ञातं*।
*भारत  भारती  हिंदी*।
*विज्ञ लगे भली बिंदी*।
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✍©
बाबू लाल शर्मा ' विज्ञ'
सिकंदरा,दौसा, राजस्थान
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विज्ञात छंद नामकरण के अवसर पर कुछ साथियों के बधाई संदेश आपके साथ साझा कर रहे हैं .........

चमेली कुर्रे 'सुवासिता': 
मिलता नूतन छंद है, नाम दिये विज्ञात।
कलम छंद शाला कहें, नई मिली सौगात ।।
नई मिली सौगात, प्रेम की धारा बहते।
नमन करू हर बार, धन्य हो गुरु सब कहते।।
सुवासिता ये छंद, गगन में हरदम खिलता।
दुनिया में हो नाम,छंद नित सबको मिलता।।
*विज्ञात छंद* के लिए
 आ.विज्ञात गुरु देव जी
          और
पटल को हृदय तल से बहुत बहुत बधाई 💐🌹🎂🌹💐👏

        🙏🙏🙏
✍चमेली कुर्रे 'सुवासिता'

जगदलपुर बस्तर (छत्तीसगढ़)


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा' जी: आदरणीय "विज्ञात "जी को इस शानदार उपलब्धि के लिए बहुत बहुत बधाई।
किसी भी साहित्यकार के लिए ये गर्व का विषय है कि उसके नाम से किसी विधा का नामकरण हो ।
जब तक हिन्दी साहित्य जिंदा है 
तब तक ध्रुव तारे सा ये नाम अमिट रहेगा । 
आज छंद विधान  में एक और छंद की वृद्धि हुई ,और बड़े ही सम्मान का विषय है कि हमारे गुरुदेव द्वारा हुई  हम उनके साथ जुड़े हैं सोचकर भी स्वयं को गौरवान्वित पाते हैं।मंच के  सामने एक सुझाव रखना चाहूंगी ।
आदरणीय संजय कौशिक विज्ञात जी को *आचार्य* पदवी से सुशोभित किया जाना चाहिए। 🙏


वंदना सोलंकी 'मेधा'जी: आदरणीय विज्ञात सर के मार्गदर्शन में हम जैसे छंदमुक्त लिखने वाले रचनाकारो ने छंदबद्ध रचनाओं का सृजन करना सीखा।आपका सान्निध्य हम सभी को प्राप्त हुआ ये हम सभी के लिये बहुत गौरव एवं परम सौभाग्य की बात है।
आज के इस ऐतिहासिक पल के हम भी साक्षी हैं ये हमारे लिए सौभाग्य की बात है।।आपने अपनी अथक मेहनत,लगन व साहित्य के प्रति अनुराग से ये साबित कर दिया है कि सफलताएं यूँ नहीं प्राप्त होती उसके लिए समय परिश्रम व साहित्य साधना के प्रति अगाध श्रद्धा भाव की आवश्यकता होती है।
सखी कुसुम कोठारी जी ने सच ही कहा विज्ञात छंद के प्रणेता को आज के स्वर्णिम दिवस पर "आचार्य"की पदवी से सुशोभित किया जाना चाहिये।
आपको एक बार फिर हार्दिक बधाई एवं  शुभकामनाएं 💐💐👏👏

नीतू ठाकुर 'विदुषी' जी : इस छंद का अविष्कार इस पटल पर हुआ है और आदरणीय विज्ञात सर का शोध है तो हम सब के लिए हर्ष और गौरव की बात है। *विज्ञात छंद* से उत्तम नाम इस छंद के लिए हो ही नही सकता। इस सुंदर छंद की ढेर सारी  बधाई और शुभकामनाएं 💐💐💐आदरणीय विज्ञात सर जब से मै इस मंच से जुड़ी हूँ मैने आपको सभी को प्रोत्साहित करते और साहित्य के लिए अथक प्रयास करते देखा है। किसी भी विधा को लिखने में और लिखवाने में आप शुद्धता का सदैव ध्यान रखते है। आपके साहित्य प्रेम की प्रसंशा करने के लिए शब्द नही हैं मेरे पास पर आज साहित्य को एक नया छंद देकर आपने जो कार्य किया है वह निःसंदेह अविस्मरणीय है। आपके नाम से यह छंद भरपूर प्रसिद्धी पाए और अपना अलग स्थान प्राप्त करे यही ईश्वर से प्रार्थना। इस ऐतिहासिक पल के साक्षीदार बनने का सुअवसर मिला जिसके लिए हृदयतल से आपका आभार व्यक्त करते हैं 🙏🙏🙏

अथक परिश्रम से बना, नया छंद विज्ञात।
चहुँ दिश में यह गूँजता , हुआ सभी को ज्ञात।।

इस शानदार उपलब्धि की आपको और इस मंच को ढेर सारी बधाई और शुभकामनाएं 💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

अनंत पुरोहित 'अनंत'जी: आज का दिन निस्संदेह ऐतिहासिक है और आज कलम की सुगंध छंदशाला समूह इस ऐतिहासिक घटना का साक्षी बना। छंद साधना में लीन आदरणीय संजय कौशिक 'विज्ञात' साहब की लगन, निष्ठा और कर्मठता ने आज साहित्य जगत में अपना नाम अमर कर दिया एवं अग्रगण्य छंदकारों की पँक्ति में अपना नाम सम्मिलित कर दिया।

वर्णिक छंद बहुत ही कठिन होता है। इसमें वर्णों का चयन सावधानी से करना होता है। जाहिर है ऐसे में पर्याप्त उदाहरण होने के बावजूद छंद रचना कठिन होता है। तब यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि एक नया छंद विधान की रचना कर देना किसी सामान्य व्यक्ति का कार्य नहीं है। असाधारण प्रतिभा के स्वामी विज्ञात साहब को पुनः उनकी इस उपलब्धि पर कोटिशः बधाइयाँ प्रेषित करता हूँ।

कर्मठ साहित्यकार श्री विज्ञात साहब ने भारतीय साहित्य को 'विज्ञात छंद' के नाम से नया छंद देकर और समृद्ध किया है। आपकी लेखनी को मैं नमन करता हूँ।
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

अनुपमा अग्रवाल 'वृंदा' जी : आदरणीय सर का सान्निध्य हम सभी को प्राप्त हुआ ये हम सभी के लिये बहुत सौभाग्य की बात है।आज इस ऐतिहासिक पल के हम भी साक्षी हैं यही सोचकर गर्व की अनुभूति हो रही है।आज का दिन छंद विधान की दुनिया में एक स्वर्णिम दिन है और इसका एक हिस्सा हम सब भी हैं।आदरणीय सर! आपको एक बार पुनश्च हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं 🙏🙏🍫🍫🍫💐💐💐💐💐💐👏👏👏

अभिलाषा चौहान 'सुज्ञ' जी : आदरणीय बहुत ही सुन्दर छंद रचे आप।आपकी विद्वता को नमन।आपके मार्गदर्शन में हमें नित नवीन विधाओं की जानकारी मिल रही है। आज आपने इस नवीन छंद का सृजन किया लेकिन मैं उस पर नियमबद्ध रचना नहीं कर पाई। लेकिन प्रयास करूंगी की उत्तम सृजन करूँ।आप जैसे गुरू
पाकर हम जैसे नवांकुर धन्य है।🙏🙏🙏💐💐💐💐💐💐💐💐

अनुराधा चौहान 'सुधी' जी : आदरणीय विज्ञात जी आपके सानिध्य में हमेशा कुछ न कुछ नया सीखने को मिलता रहता है।आज एक नया छंद सीखने मिला और सबसे खुशी की बात यह है कि इसे आपके नाम से जाना जाएगा।यह हमारे लिए गौरव की बात है हम ऐसे गुरु की छत्रछाया में हैं जिनके पास साहित्य का अपार भंडार है। बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं आदरणीय 💐💐💐💐💐💐💐💐💐

प्रजापति कैलाश 'सुमा: आदरणीय गुरुदेव आपके हृदयमंदिर में विराजमान दैदीप्यमान हम अनुजों के लिए असीम प्रेम व दुलार से परिपूर्ण आपकी महानता को कोटि कोटि सादर वंदन/नमन...🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🌹

आपका प्रेम/दुलार हमें ऐसे ही मिलता रहे इन्हीं मङ्गलमय भावों के साथ ...🌹

आपका
अनुज
*प्रजापति कैलाश 'सुमा'*
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

सुशीला साहू 'विद्या' जी :
*विज्ञात छंद नामकरण*
===============
पल-पल में -
      खुशियों की बरसात हो ।।
इक दूजे में-
       गम का कभी न साथ हो।।
नवगीत जीवन में आपका,
               छंदशाला हरा-भरा बाग हो।।
आप चिरंजीवी रहो सदा,
               हम सब छंद में लीन हो I
अपकी कृपा दृष्टि बनी रहे,
              सदा अमर "विज्ञात छंद" हो।।

 परम आदरणीय गुरूदेव विज्ञात जी को अनंत शुभकामनाएं एवं बधाई,...💐💐💐💐

सुशीला साहू "विद्या"
रायगढ़ छ.ग.


सुनील बाजपेयी 'शिवम' जी : बहुत बहुत *बधाई-आदरणीय* आप द्वारा प्रेरित विशेष छंद में आज नये छंद जिसका नामकरण *विज्ञात-छंद* के रूप में पटल स्वीकृति से हुआ में आज एक *गीत* माँ हंसवाहिनी की अनुकम्पा से मेरे द्वारा सृजित हुआ ।शायद इस नव विधा का यह पहला गीत लिख पाकर मैं भी आप सबके स्नेह से धन्य हुआ।
आदरणीय आप सबका अथक प्रयास पटल को नई  ऊर्जा से गतिमान करे,,यही कामना माँ हंसवाहिनी से है।🙏💐🙏

डॉ़ इन्दिरा  गुप्ता  'यथार्थ':- वाह अति सुन्दर मुबारकबाद आ विज्ञात ज़ी ..हार्दिक बधाई ...गुरु जितनी उचाई को प्राप्त होता हैं
शिष्य उतना अधिक लाभान्वित होते हैं और अपने आपको गोरन्वित महसूस करते हैं
पुनः बधाइयाँ बधाईयाँ
🌹🌹🌹🌹🌹🌹
डॉ़ इन्दिरा  गुप्ता  यथार्थ

अनिता सुधीर 'आख्या' जी :  गुरु जी हार्दिक शुभकामनाएं
ये मेरे लिये सौभाग्य की बात है
कि इस विशेष विज्ञात छन्द सृजन में समीक्षक की भूमिका में रही ,
अब गूगल बाबा पर ये लाना है ।
सादर 🙏🙏🙏

धनेश्वरी देवांगन 'धरा' जी : अनेकानेक बधाई आदरणीय गुरूवर आपको 💐💐💐💐💐💐💐💐
 सच  इस नवीन‌ छंद के सृजन में हमें बहुत. ही आनंद आया ।
😊😊😊😊

मिला आज इस  मंच पर , नवल छंद विज्ञात ।
हर्ष उल्लास मोघ की ,हो हर क्षण बरसात ।।
*धरा*

सब की प्रतिक्रयाओं पर आभार व्यक्त करते हुए आदरणीय संजय कौशिक 'विज्ञात' जी ने कहा......

कलम की सुगंध छंदशाला मंच को सादर नमन आप सभी छंद मर्मज्ञ कलमकारों की उपस्थिति को सादर नमन , वंदन, अभिनंदन 🙏🙏🙏
मंच पर उपस्थित पंचपरमेश्वर स्वरूप समीक्षक मण्डल के तीनों स्वरूप और प्रमुख मंच संचालिका आदरणीया अनिता मंदिलवार सपना जी आप सभी का आत्मीय आभार प्रकट करता हूँ कि आप सभी ने मेरे द्वारा किये गए प्रयास को समझा और उसपर बहुत अच्छे से सृजन कर उस शिल्प को स्वीकार किया।
एकबार तो लगा अतिकलिष्ट विषय आ गया है मंच पर, परंतु आप सभी कलमकार जो किसी भी विधा को कितना भी लम्बा लिख देने में समर्थ हैं आप सभी की लेखनी आज के प्रदत्त विषय पर दौड़ी तो अपने निर्धारित लक्ष्य तक जा पँहुची। जिसे देख कर मन प्रसन्न हुआ।  सृजन में और नियम में अन्य कोई सुधार अपेक्षित हो तो पावन मंच से आग्रह है कि सुझाव अवश्य प्रेषित करें। आज मंच एक ऐतिहासिक निर्णय लेने जा रहा है। जिसके आप सभी साक्ष्य रहेंगे। ऐसे में मेरा विनम्र निवेदन है कि सुझाव और संशोधन सादर आमंत्रित हैं। और मंच मिलकर निर्णय करे। इस ऐतिहासिक निर्णय से साहित्यिक जगत में आप सभी के साक्ष्य की  भूमिका की सदैव सराहना की जानी चाहिए।
आप सभी के सृजनात्मक प्रयास की ढेरों बधाइयाँ और शुभकामनाएं💐💐💐 आप सभी के लाड प्यार और दुलार का आत्मीय आभारी हूँ पुनः आभार प्रकट नहीं करूंगा। क्योंकि मुझे इस अनमोल स्नेह की छाँव तले आजीवन रहना है। विश्वास है निकट भविष्य में भी आप यह स्नेह बनाये रखेंगे 🙏🙏🙏

संजय कौशिक 'विज्ञात'

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आदरणीय संजय कौशिक 'विज्ञात' जी द्वारा रचित विज्ञात छंद की प्रथम रचना...


*विधान* ---
वर्णिक छंद जिसमें 8 वर्ण होते हैं जिसमें 13 मात्राएं होती हैं। प्रति 2 चरण तुकांत समतुकांत रहेंगे। आइये छंद के शिल्प को और सरलता से गण के माध्यम से समझते हैं इसके शिल्प को
गण के अनुसार : भगण रगण गुरु गुरु
मापनी के अनुसार : 211 212 22
*उदाहरण :-*
ढोंग विकार सारे हैं।
लोग पुकार हारे हैं।।
साधु समीप जो जाते।
लूट खसोट वो खाते।।
रोक विनाश की लीला।
दोष हजार सा पीला।।
लाख प्रमाण हैं होते।
खोकर भाग्य को रोते।।
साधक हों विचारों के।
पावन चन्द्र तारों के।।
पीपल पूण्य बातों के।
देख प्रभाव रातों के।।
मार्ग बचाव के सोचो।
मानव ढोंग को नोचो।।
रक्षक धन्य है होता।
भारत साधु क्यों ढोता।।


संजय कौशिक 'विज्ञात
🌞🌞🌞

विज्ञात छंद पर सृजन हुई कुछ रचनाएँ ....

अनिता सुधीर 'आख्या' जी :
नमन मंच
विज्ञात छंद
211  212 22

ये जग का लगा मेला।
दो दिन का रहा खेला ।।
है  मन में  चले रेला ।
जीवन साँझ की बेला ।।

भोग विलास में जीये।
माहुर घूँट ही पीये।।
पाप विनाशनी आओ।
ज्ञान प्रकाश  फैलाओ ।।

मोह रही सदा माया।
मोक्ष मिले नहीं काया।
कार्य प्रधान ही जानें ।
प्रेम निदान ही  मानें ।।

दानवता जहाँ पायें।
मानवता वहाँ लायें।।
भौतिक से रखो दूरी।
नैतिकता करो पूरी ।।

अनिता सुधीर 'आख्या'
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चमेली कुर्रे 'सुवासिता' जी :
दिनांक -10/04/2020
 दिन -शुक्रवार
विज्ञात छंद मापनी
*211  212  22*
 फूल खिला दिखा प्यारा ।
   शूल दिया उसे सारा ।
   चाल हवा चली कैसी ।
     पागल है लगी वैसी ।

राह चली विछा काँटा।
अंग कटार से बाँटा।
याद करे कहाँ कोई।
धूल मिले खुशी रोई।

 आज स्वयं यही जाना।
हार कभी नही माना ।
आँख ढ़के सभी सोई।
है अपना नही कोई।

ये अबला नही नारी ।
आज दिखे बड़ी भारी।
घायल है दहाड़ेगी ।
गीदड़ को पछाड़े़गी।
          🙏🙏🙏
✍चमेली कुर्रे 'सुवासिता'
जगदलपुर बस्तर (छत्तीसगढ़ )

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विज्ञात छंद
दिनाँक - 10/04/2020
दिन - शुक्रवार
विधा - 211 212 22
********************************
प्रीत भरी सुनी बातें ।
यूँ गुजरी कई रातें ।।
ये निदिया कहाँ खोई ।
नैन थके नहीं सोई ।।

लोग कहे दिवानी है ।
बात कभी न मानी है ।।
मैं कहती सयानी हूँ ।
प्रेम भरी कहानी हूँ ।।

मैं पिय की करूँ पूजा ।
और न धर्म है दूजा ।।
मैं यह जिंदगी सारी ।
आज पिया तुम्हें वारी ।।

कष्ट मिले भले यारा ।
साथ सदा रहे प्यारा ।।
भूल गए बना मीता ।
प्रेम घड़ा रहा रीता ।।

सूर्य शशी न चाहूँ मैं ।
सिर्फ तुम्हें सराहूँ मैं ।।
बात सुनो पिया मेरी ।
आन मिलो न हो देरी ।।
*********************************
✍️इन्द्राणी साहू"साँची"✍️
    भाटापारा (छत्तीसगढ़)   
★★★★★★★★★★★★★★★★★

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विज्ञात छंद
मापनी- 211. 212   22

प्रीत बिना लगे आधा ।
कृष्ण बिना‌ कहाँ राधा ।।
बाँसुरिया  हिया  मोहे ।
मोहन रूप है सोहे ।।
*****
मोहन‌ नंद  के लाला ।
मोहक बाँसुरी वाला ।।
श्याम छटा बड़ी न्यारी।
हर्षित गोपियाँ सारी ।।
*****
नृत्य करे करे लीला ।
माखन चोर रंगीला ।।
रास महा रचाते हैं ।
ग्वालन को नचाते हैं ।।
******
पूनम की खिली  रातें ।
केशव की छिड़ी बातें ।।
मोहित राधिका गोरी ।
नैनन से करे चोरी ।।
*****
कानन कुंडली भाये ।
नैन विशाल जो पाये ।।
देख अधीर हो जाते ।
मीत मुरारि  सा पाते ।।
****
ढोल मृदंग भी बाजे ।
रात सुहावनी साजे।।
सूरतिया लगे  भोली ।
मोहत मोहिनी बोली ।।
*****
सोहत कामिनी नारी ।
कंठन रागिनी सारी ।।
गोपन सुंदरी लागे।
नैनन नींद भी भागे ।।
******
देख सखी कहाँ खोयी।
 रात कई   नहीं सोयी ।।
बोल भला कहाँ पाऊँ
श्याम बिना कहाँ जाऊँ ।।

****"
*धनेश्वरी देवाँगन धरा*
*रायगढ़, छत्तीसगढ़*

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9920796787****रवि रश्मि 'अनुभूति '

   🙏🙏

    विज्ञात छंद       
  ************
विधान ~
8 वर्णिक वर्ण , 13 मात्राएँ , प्रति 2 चरण तुकांत समतुकांत रहेंगे ।
गण के अनुसार ---
भगण    रगण    गुरु    गुरु
मापनी ----
211    212    2    2

देख चला करो राधा ।
साथ चलो नहीं बाधा ।।
हार कभी नहीं मानो ।
आज सभी सुखी जानो ।।

भूख लगी खिला रोटी ।
नीयत हो रही छोटी ।।
 देख बना अभी चोटी ।
आज बनी अभी छोटी ।।
211  212  2  2
देख अभी नहीं हारे ।
आज गिनें सभी तारे ।।
बात करो सदा साँची ।
देख किताब है बाँची ।।

सूख गयी अभी डाली ।
नाली यहाँ गयी ढाली ।
मानव भरी यही नैया ।
डूब सके न ये भैया ।।
&&&&&&&&&&&&&&&

(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '
10.4.2020 , 8:24पीएम पर रचित।

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अनुराधा चौहान जी:
 *प्रथम प्रयास*
*दिनाँक-10/4/20*
विज्ञात छंद मापनी- 21121222

काम छिना चले भूखे।
धाम छिना गला सूखे।।
गाँव बसा बड़ी दूरी।
आस हुई कभी पूरी।।

जीव लगे त्रास कैसा।
दंश लगे नाग जैसा।।
काल खड़ा भुजा फैला।
दोष कहाँ दिखे मैला।।

बैठ चकोर सा प्यासा।
मानव ये लिए आशा।।
रात नहीं सदा सोती।
भोर नई लिए होती।।

रोग हमें भगाना है।
जीवन को हँसाना है।।
आज यही करो वादा।
मानव से हटे बाधा।।
*अनुराधा चौहान'सुधी'*

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सुनील वाजपेयी शिवम् जी:
 आज पटल विषय विज्ञात छंद की मापनी

भगण रगण गुरु गुरु
२११ २१२ २२

 पर *गीत* सृजन प्रयास --

साथ सदा निभाना रे।
प्रीति नहीं भुलाना रे।।

नाज भरी नदी नीरा
ताज जड़ा लगे हीरा
साज सजे सुहाना रे
चोट पड़े जमाना रे।-

फूल खिली डली जैसे
भूल सकूँ भला कैसे
शूल नहीं चुभाना रे
प्राण पड़े गँवाना रे।-

चैन कभी चुरा लेते
नैन कभी रुला देते
रैन नहीं सताना रे
जाग पड़े बिताना रे।-

मोड़ घड़ी कहाँ जाऊँ
तोड़ नहीं कहीं पाऊँ
छोड़ चलूँ लुभाना रे
प्रीति पड़े पढ़ाना रे।-

शान गढूँ चलूँ पैने
ठान लिया यही मैंने
आन नहीं घटाना रे
मीत पड़े बनाना रे।-

🙏 *सुनील वाजपेयी शिवम्*
तिलोकपुर(हैदरगढ़)बाराबंकी,यूपी।

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[ नीतू ठाकुर 'विदुषी': दिनांक:- 10.4.2020
विधा :- विज्ञात छंद
भगण रगण गुरु गुरु
मापनी- २११ २१२ २२

भारत से चले जाते।
जो सपने लिये आते।।
वो सब दूर ही पाते।
देख यथार्थ शर्माते।।

घाव सहे सभी नाते।
बोल कभी कहाँ पाते।।
छोड़ चले पिता माता।
भूल गए सखा भ्राता।।

प्रीत भरा जहाँ सारा।
जीत बिना लगे प्यारा।।
देख दिखा रही राहें।
खोल खड़ी धरा बाहें।।

मित्र मिले सुई जैसे।
लोग हँसे भला कैसे।।
घाव करे बिना बोले।
दाँव लगे बिना खेले।।

नीतू ठाकुर 'विदुषी'

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*विषय..... मानव*
विधा.......विज्ञात छंद
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
*विज्ञात छंद विधान*
८ वर्ण , १३ मात्राएँ होती हैं।
प्रति दो चरण समतुकांत
गण  : भगण रगण गुरु गुरु
२११  २१२  २२
************************************
मानव  का यही नारा।
पावन  है जहाँ  सारा।।
               राजन के बनो प्यारा।
               भावन हो प्रजा न्यारा।। 
************************************
सागर धार ले आया।
मात सखा सभी भाया।
               कोमल भाव सा राखे।
               सावन  माह भी साखे।।
************************************
देख सखा भये भीमा।
मानवता  सहीं  सीमा।
               नाश करो अभी सारा।
               घातक भाव सा धारा।।
************************************
  स्वलिखित
*कन्हैया लाल श्रीवास 'आस'*
  भाटापारा छ.ग.
  जि.बलौदाबाजार भाटापारा

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विज्ञात छंद
मापनी- 211 212 22

सावन आय देखो जी
 जी तड़पाय आओ जी
पी बिन सून संसारा
बादल छाय  जी हारा


कोयल कूक. गाती है
पी सुन याद आती है
नीर भरे भरे नैना
पीर सहे कहे ये ना


ये पपिहा पुकारे है
बालम  आय द्वारे हैं
दीप जला सजी थाली
प्रीत पिया  लजा पाली


लो हरषे जिया साथी
आय  पिया बिना पाती
पायल छूम  बजी प्यारी
साजन मैं जिया हारी

डॉ मंजुला श्रीवास्तव

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विषय:- वृक्षारोपण
छंद:- विज्ञात छंद
शिल्प-२११ २१२ २ २ मात्रा प्रति पंक्ति।

पेड़ लगा हमेशा तू,
बाग सजा हमेशा तू।
पुत्र समान पेड़ों को,
खूब उगा हमेशा तू।।
पेड़ लगा हमेशा तू।

स्वच्छ हवा मिले जानो,
है वरदान तू मानो।
शुद्ध करे हवा देखो,
रोप उसे हमेशा तू।।
पेड़ लगा हमेशा तू।

फूल खिले जगे भौंड़े,
होकर मस्त वो दौड़े।
देख जरा इसे यारों,
आस जगा हमेशा तू।।
पेड़ लगा हमेशा तू।

बिनोद कुमार "हँसौड़ा" दरभंगा(बिहार)

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प्रथम प्रयास👏
विज्ञात छंद- २११ २१२ २ २

जाकर वाटिका न्यारी।
धावत बालिका प्यारी।।
स्वर्णिम रश्मियाँ फैलीं।
रौनक कोकिला बोली।।

नाहर घूमता मानो।
बाहर घूमता जानो।।
नाहक छेड़ना छोड़ो।
राह अभी चलो मोड़ो।।

सूरज जा रहा देखो।
देकर वो खुशी सीखो।।
पंकज सो रहे पानी।
हर्षित है निशा रानी।।

सागर संध्या भायी।
हाँ तट ताजगी  छायी।।
चंचल चाँदनी शोभा।
मोहक रात की आभा।।

समीक्षा हेतु सादर प्रस्तुत👏👏
गीता द्विवेदी

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विज्ञात छंद मे एक प्रयास.
शिल्प-२११ २१२ २ २

      "साजन को भूल जा"
जीवन में सभी आये।
 संग नहीं निभा पाये।
 कौन कहो कहांँ जाये,
 ढूंढ कभी नही पाये।।

 भूल गये सभी जाके।
रैन चली गई रो के।
 प्रीत कहाँ छुडा पाये।
ह्रदय ये कहाँ जाये।

साजन भूल भी जाये|
प्रीत बिसार भी  पाये|
 प्रीतम तो सलोना है।
  भूल, तुझे न रोना है।

रोग अजीब है माई
प्रीत अभाव है खाई|
नींद कहाँ पडे रैना|
अश्रु भरे,रहे नैना॥

डॉ श्रीमती कमल वर्मा

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विज्ञात छंद
शिल्प-२११ २१२ २ २
--------------

लोग सहाय होते हैं।
भोग अनाथ देते हैं।।
दु:ख अतीत हो जाते।
फूट शरीर से आते।।

 रोग अथाह है माया।
 कौन उधार  ये लाया।।
 मौन सप्रेम है रोते ।
 लेकर पीर है सोते ।।

पावन है बिचारी  ये।
लांछन मुक्त हारी रे ।।
नीरव युक्त रातों के।
देख अभाव साथों के।।

राह दुरूह है बोलो।
 दानव रूप तो खोलो।।
 भक्षक भग्न हो तोड़ो।
 लालन सार क्यों  छोड़ो।।


अर्चना पाठक निरंतर
अम्बिकापुर

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*ॐ*
*🌻विज्ञात छंद🌻*
विधान:-भगण रगण गुरू गुरू
           211   212  2 2
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
           🌺
एक नयी विधा आयी।
देख सखी खुशी छायी।
सुंदर   नाम   है  पाया।
ये इतिहास को भाया।।
           🌺
कोयल  तान  छेड़ेगी।
प्रीतम  संग  डोलेगी।।
गीत   नये  नये  गाके।
डारन झूल जा जा के।।
          🌺
फागुन   रंग  जाएगा।
दामन  भीग जाएगा।।
नेह  अबीर   छोड़ेंगे।
बोल नवीन बोलेंगे।।
         🌺
खेल नया सजा लेंगे।
रंग नया जमा देंगे।।
फूल नये खिले होंगे
हार नये  बनाएंगे।।


  ----सु श्री गीता उपाध्याय"गोपी"
              रायगढ़ छत्तीसगढ़
           दिनांक 10-4-2020
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
दिनांक संशोधित🙏🙏

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आज के विषय पर एक प्रयास--
विज्ञात छंद
शिल्प-२११ २१२ २ २

आज लगे मुझे ऐसे
हाथ अनेक हों जैसे
साफ करूँ  सभी कोने
बर्तन धो चलूँ  सोने।

चावल दाल जो खाऊँ
किस्मत से मिले पाऊँ
सोच रही यही नारी
क्यूँ यह आपदा भारी

जान सके नहीं कोई
अंत नहीं पता  होई
आस लगी हुई थोड़ी
क्यूँ करके अभी छोड़ी।

जंग यही छिड़ी जीतें
साहस से नहीं रीतें
शक्ति अनूप है पाई
साथ सभी लिये आई।।

अनुपमा अग्रवाल 'वृंदा'

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💐प्र थम प्रयास ।💐
विज्ञात छंद
211,212,22
  दिनांक10/04/20
जीवन बोझिलो वाला।
गीत सुना रही बाला।
जीवन है नहीं भाये।
छोड़ हमे कहाँ जाये।
*****************
संग पिया चली जाऊँ।
प्रेम पिया महकाऊं।
जाग सखी अभी आई।
राग  मुझे सदा भाई।
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है अपना जमी सोई।
जान सके नहीं कोई।
जीवन बोझिलो वाला।
गीत सुना रही बाला।
*****************
लेअब चादनी  सोई।
रात हमें नहीं भाई।
रात दिखे यहाँ कारी।
जाग अभी तेरी बारी।
💐श्रीमती कृष्णा पटेल
  रायगढ़ छत्तीसगढ़

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वर्णिक छंद
विधान :-8वर्ण ,13मात्रायें, प्रति दो चरण समतुकांत,
मापनी गण अनुसार :-भगण रगण गुरू गुरू
वर्ण क्रम अनुसार :-211 212 22
छंद नाम :-- *विज्ञात छंद*

क्यों हमको पुकारी हो ।
बात बता न ,हारी हो।
साथ कभी न खो पाता।
आज समीप जो आता।

चाहत साथ की ही थी ।
आफत आप की ही थी।
रात सिखा रही धोखा।
खोज रहे हमीं मौका।

जीत रही बिमारी है ।
मौत लगे न हारी है।
मानव हार मानेगा!!
कौन यहाँ पुकारेगा?

साथ नहीं *विभा* गाती ।
लो अब छोड़ के जाती।
साथ कभी तुमारा  था
देख तभी निहारा था।

पाँव कभी बढ़ेंगे क्या?
साथ कभी चलेंगे क्या?
आँसु बिखेरती रातें।
याद सभी रही बातें।
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©मनोरमा जैन 'विभा'
मेहगाँव ,भिंड ,म.प्र.
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मंच को नमन
*कलम की सुगंध छंदशाला में आप सबका स्वागत है*
दिनांक 10/04/2020
विषय *विज्ञात छंद*
विषय प्रभारी *आ संजय कौशिक "विज्ञात" जी*
*मापनी 211 212 2 2*

आज बता रही *राधा*
ईश हरें सभी बाधा
दीप जला रही नारी
है विपदा यहाँ भारी

आप रहें यहाँ ऐसे
साँप रहे छुपा जैसे
बाहर है कहीं सेना
हाथ नहीं उसे देना

बात सभी सुनो मेरी
आप करो नहीं देरी
छंद समूह में आओ
छंद सभी यहाँ गाओ

साँझ अभी नहीं आई
आ करके पढ़ो भाई
आज हुआ यहाँ टोना
पास रहो नहीं खोना

राधा तिवारी"राधेगोपाल"
खटीमा
उधम सिंह नगर
उत्तराखंड

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विज्ञात छंद(वार्णिक)
8 वर्ण 13 मात्रिक
मापनी : 211  212  22

साजन जिंदगी मेरी।
है अब बन्दगी तेरी।।
गीत मुझे सुना जाना।
आप नहीं भुला जाना।।

बादल सा घना छाया।
प्रीत यहाँ मुझे लाया।।
राग मल्हार प्यारा है।
जीवन गीत न्यारा है।।

यार नहीं सता जाना।
प्रीत हमें जता जाना।।
फूल कली खिलाना है।
प्यार तुम्हें सिखाना है।।

रचनाकार-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,कबीरधाम(छ.ग.)

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आदरणीय संजय कौशिक 'विज्ञात' जी द्वारा निर्मित विज्ञात छंद के विषय मे जानकारी हेतु दिए गए लिंक को क्लिक कीजिए 🙏

https://youtu.be/A04HRAnkqcc

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विज्ञत छंद निर्माण की खबर अखबार में ....


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