Friday, 17 April 2020

विज्ञात छंद पर हिन्दी के डॉक्टरेट की समीक्षा



विज्ञात छंद पर छंदाचार्यों की समीक्षा :-








*श्री संजय कौशिक* ' *विज्ञात' द्वारा आविष्कृत विज्ञात छंद की समीक्षा*
     समीक्षक- डॉ सरला सिंह "स्निग्धा", दिल्ली
            
          छन्द शास्त्र के विद्वानों में आदरणीय
गुरु संजय कौशिक "विज्ञात"जी का नाम  भी
शामिल हो गया है। छन्द सहज नहीं है और एक नये छन्द का निर्माण तो और भी कठिन कार्य है उन्होंने इतने सहज ढंग से विज्ञात छन्द का निर्माण किया की सभी दंग रह गये। इस समय  छंदशाला के माध्यम से कुछ लोग नवीनतम छंदों पर अनुसंधान कार्य कर रहे हैं लेकिन इस क्षेत्र में  नवीनतम छंद विधान का कार्य अपेक्षाकृत बहुत ही कम है । कवि राधेश्याम द्वारा राधेश्यामी छंद का विधान इसी श्रेणी में ही आता है । मुझे यह बताते हुए बहुत ही खुशी का अनुभव हो रहा है कि आदरणीय गुरुदेव श्री संजय कौशिक 'विज्ञात' जी ने  "विज्ञात छंद" का सृजन किया है और उसके शिल्प विधान को भी बड़ी तकनीक के साथ प्रस्तुत किया है । वार्णिक छंदों की श्रेणी में समाहित किए गए इस छंद में कुल 13 मात्राएं है - भगण (211), रगण (212) , गुरु (2) ,गुरु (2) के संयोजन से निर्मित यह छंद  बहुत ही सुन्दर  है । इस तुकांत छंद का प्रति चरण समतुकांत है । 'कलम की सुगंध' साहित्यिक मंच के लगभग 150 रचनाकारों ने इस सृजन की घड़ी को उनके साथ साथ जिया है ।उनके इस प्रयास की सराहना तथा सहर्ष  स्वीकृति देते हुए इसे "विज्ञातछंद" का नाम दिया गया तथा इसी छन्द पर अनेकानेक रचनाएं लिखी गयीं।
        मैंने भी इसी छंद में दो-तीन रचनाएं लिखी है । मैं आदरणीय श्री संजय कौशिक जी के इस प्रयास की सराहना करती हूं ।आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास के साथ कामना करती हूं की आगे भविष्य में भी नवीन नवीन छन्दों का निर्माण करें । साहित्य जगत के महान छन्दकारों में उनका नाम  स्वर्णाक्षरों में लिखा जाए यही मेरी शुभकामना है।
     
डॉ सरला सिंह "स्निग्धा"
दिल्ली


*श्री संजय कौशिक* ' *विज्ञात' द्वारा आविष्कृत विज्ञात छंद की समीक्षा*
 *समीक्षक :- भारत भूषण वर्मा*
     --------------------------
 काव्यशास्त्र में पिंगल मुनि का नाम बड़े आदर से लिया जाता है जिन्होंने छंद शास्त्र का प्रणयन किया और काव्य को विभिन्न प्रकार के बंधनों से बांधने के लिए जिस साधन का प्रयोग किया वे छंद कहलाए । हमारे संस्कृत काव्य-शास्त्र ही हिंदी काव्यशास्त्रग्रंथो के आधारस्तंभ माने जाते हैं ।  हिंदी साहित्य में आदिकाल, भक्तिकाल, और रीतिकाल के दौरान  अवधी और ब्रजभाषा के प्रभावस्वरूप अनेक छंदों का जन्म हुआ ।  व्यापक साहित्य लेखन के दौरान दोहा ,रोला, छप्पय, कवित्त, सवैया , कुंडलियां उल्लाला , चौपाई इत्यादि छंदों में महान काव्य-ग्रंथों का सृजन हुआ । तत्पश्चात्  आधुनिक युग में भी छंदोबध्द रचनाएं लिखी गई । फिर नई कविता के दौरान छंदरहित काव्य का दौर भी शुरू हुआ । लेकिन छंदबद्ध काव्य का प्रभाव शाश्वत एवं स्थाई साबित हुआ । वर्तमान समय में छंद मर्मज्ञ साहित्यसेवी छंदशाला में नवीनतम छंदों का अनुसंधान कार्य कर रहे हैं लेकिन इस क्षेत्र में  नवीनतम छंद विधान का कार्य अपेक्षाकृत बहुत ही न्यून है । कवि राधेश्याम द्वारा सृजित राधेश्यामी छंद का विधान इसी श्रेणी में ही आता है । मुझे यह बताते हुए हर्ष की अनुभूति हो रही है कि हमारे साहित्य जगत में एक नवीन छंद की खोज करने में श्री संजय कौशिक 'विज्ञात' जी का नाम भी जुड़ गया है । जिन्होंने विज्ञात छंद का सृजन किया है और उसके शिल्प विधान को भी बड़ी तकनीक के साथ प्रस्तुत किया है । वर्णिक छंदों की श्रेणी में समाहित किए गए इस छंद में कुल 13 मात्राएं है - भगण (211), रगण (212) , गुरु (2) ,गुरु (2) के संयोजन से निर्मित इस छंद की छटा निराली है । इस तुकांत छंद का प्रति चरण समतुकांत है । 'कलम की सुगंध' साहित्यिक मंच के लगभग 150 साहित्य-सृजको ने  उनके इस प्रयास की सराहना की है तथा सहर्ष इसे स्वीकृति भी प्रदान करते हुए इसी छंद में सृजन भी किया है ।
 मैंने भी इसी छंद में एक रचना का प्रणयन किया है । मैं आदरणीय श्री संजय कौशिक जी के इस प्रयास की सराहना करता हूं ।भविष्य में भी उनसे नवीनतम प्रयोगों की कामना करते हुए उन्हें शुभकामनाएं प्रेषित करता हूं ।
     धन्यवाद सहित,
       --भारत भूषण वर्मा
 असंध (करनाल) हरियाणा



No comments:

Post a Comment