विज्ञात छंद
कलम की सुगंध छंदशाला में आदरणीया अनिता मंदिलवार 'सपना' जी के संचालन में विज्ञात छंद आधारित ग़जल और गीतिका का सृजन किया गया। प्रस्तुत हैं कुछ रचनाएँ......
अमिता श्रीवास्तव 'दीक्षा' जी: विज्ञात छंद आधारित ग़ज़ल
काफिया आ
रदी़फ देगा
211,212,22
कत्ल करे, मिटा देगा,
इश्क़ यही सजा देगा ।
कौन इमान रखता है ,
कौन तुझे दगा देगा ।
शख्स अमीर वो होगा,
फ़र्ज़ सभी चुका देगा।
आज फिगार दिखता है,
कौम इसे मिटा देगा ।
वक़्त अगर लगे मुश्किल,
मांग तुझे खुदा देगा ।
देख खड़ा उजाला है ,
इल्म तुझे सिखा देगा।
दोस्त हताश क्यों होना ,
अश्क समय सुखा देगा।
अमिता श्रीवास्तव
स्वरचित
🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃
चमेली कुर्रे सुवासिता जी:
दिनांक -12/04/2020
विधा -विज्ञात छंद आधारित गज़ल
काफिया -आता
रदीफ- है
मापनी *21 12 12 22*
रोज मुझे रिझाता है,
वो दिल को चुराता है।1।
***
सागर में छिपा मोती,
प्यास सदा बढ़ाता है।2।
***
प्रेम दिया जला देता,
जो तम को मिटाता है।3।
***
गंध बना घुला है वो,
सोच वही जगाता है।4।
***
सांस बना रमा है जो,
बात नई बनाता है ।5।
***
आज सुवासिता सोचे,
साथ वही निभाता है।6।
🙏🙏🙏
✍चमेली कुर्रे 'सुवासिता'
जगदलपुर बस्तर (छत्तीसगढ़ )
🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃
नीतू ठाकुर 'विदुषी' जी : दिनांक: 12.4.2020
विज्ञात छंद आधारित ग़ज़ल
मापनी- 21 12 12 22
वक़्त वफ़ा निभा पाता।
दौर रुला नही जाता।।
पुष्प जिसे दिया जाके,
शूल वही बना आता,
ढूँढ रही जिसे राहें,
सावन गीत वो गाता
बात सुने कहाँ कोई,
मौन कहा नही जाता।
स्वप्न बुझे हुए सारे,
दीप जला नहीं पाता
गैर उसे कहूँ कैसे,
नाम दिया नही जाता।
वो विदुषी मिलेगा ही
भाग्य लिखा कहाँ जाता।
नीतू ठाकुर 'विदुषी'
🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃
मीटर - 211 212 22
आज नहीं कहूँगी मैं।
रात गयी, सहूँगी मैं।।
क्यूँ तुमने किये वादे।
मूक बनी रहूँगी मैं।।
जान तुम्हें दिये बैठी।
नीर बनी बहूँगी मैं।।
चाह नहीं तुम्हें पाऊँ।
हाथ सदा गहूँगी मैं।।
आज यही कहे वृंदा।
अग्नि हुई दहूँगी मैं।।
अनुपमा अग्रवाल 'वृंदा '
🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃
👀👀👀👀👀👀👀👀👀
~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा 'विज्ञ'
. *गज़ल*
. °°°°°°
. २११ २१२ २२
८वर्ण °°°°°°°°१३मात्रा
......(आ, आया)
रोग यहाँ वृथा आया,
भारत क्यूँ चला आया।
सत्य बता हमें कैसे,
चक्कर में चढ़ा आया।
विश्व विजेत हो जैसे
पागल, क्यूँ भला आया।
चीन जले चले भारी,
शीश छिपा भगा आया।
जीवट भारती मानें,
मूरख तू फँसा आया।
सूरज साथ है मेरे,
अग्नि लिए तपा आया।
स्वेद श्रमी दुलारे हैं
पंथ कहाँ सखा आया।
ताप चढे हमें देखो
नर्मद में नहा आया।
शत्रु सदा डरे हारे,
सोच भरे गला आया।
काल अकाल भी काँपे,
व्यर्थ चला टला आया।
'विज्ञ" विकास की सोचे,
स्वप्न जगा महा आया।
. 👀👀
✍©
बाबू लाल शर्मा "विज्ञ"
सिकंदरा, दौसा, राजस्थान
👀👀👀👀👀👀👀👀👀
🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃
विज्ञात छन्द
गजल
मीटर- 211 212 22
*
ताल वहीं भरा होगा
अश्क़ जहाँ बहा होगा
कोशिश आंधियों ने की
ख़्वाब रुला रहा होगा ।
आज छँटी उदासी है
कुछ ख़त ने कहा होगा।
दाँव चले सियासी जो
ज़ख्म निशाँ सहा होगा।
ये निकला जनाज़ा है
दुर्ग कहाँ ढहा होगा ।
मौसम का तकाज़ा है
इश्क़ रुला रहा होगा।
आँगन चाँद खिला होगा
रोशन ये जहां होगा।।
अनिता सुधीर आख्या
🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃
मंच को नमन
211 212 22
*मापनी पर ग़ज़ल*
मैं पहचान बैठी हूँ।
ये अब जान बैठी हूँ ।।
मैं कब की उसे भूली,
भूल कर मान बैठी हूँ ।।
वो बस आ गया लेने,
ले अरमान बैठी हूँ।।
है कुछ तो नया होगा ,
मैं परवान बैठी हूँ ।।
हूँ अब तो निभाने को,
ले विषपान बैठी हूँ ।।
राधा तिवारी"राधेगोपाल"
खटीमा
उधम सिंह नगर
उत्तराखंड
🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃
विज्ञात छंद आधारित ग़ज़ल
21 12 1 22
वर्ण 8
भार अज़ाब ज्यों ढ़ोता
जीवन खार क्यों ढ़ोता
आतिश आब ए ज्वाला
चाह उरूज़ जों बोता
आज़िज आब आईना
आफ़त काल यों रोता
भूल अलीम बाज़ीचा
चैन अज़ीज़ त्यों सोता
आँच बुझी कुदेरे जो
कौन बिमारियों न्योता
चोट दिए कभी गैरो
आप शताब्दियों रोता।
आज नहीं बचा 'प्रज्ञा'
आफ़त बादियों जोता।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
आज़ाब=पीड़ा उरूज़= उत्थान
आज़िज=लाचार अज़ीज़=प्रिय
अलीम=सर्वज्ञ बाज़ीचा=खेल, खिलौना ,बादियों =कटोरा
🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃
सादर समीक्षार्थ हेतु🙏
पुनः प्रेषित
मंच के मान्य विधानानुसार एक छोटा सा प्रयास!
211 212 22
हिंदी ग़ज़ल [विज्ञात छंद आधारित]
कौन कहे हज़ारी सी
बात अजीब भारी सी।
काग लगाय फेरा है
कोयल रोय प्यारी सी।
आज दिखे यहाँ ऐसे
शक़्ल समेत हारी सी।
देख यकीन है माना
बात चुभी कटारी सी।
भूल करो न कोई भी
बात लगे न गारी सी।
वो रच के ख़ुदा बैठा
सृष्टि समग्र न्यारी सी।
पोंछन को सभी आँसू
"रीत" चली हमारी सी।
----अनिता सिंह "अनित्या"
🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃
सादर समीक्षार्थ
विज्ञात छंद पर आधारित ग़ज़ल
211 212 22
क़ाफ़िया *आ*
रदीफ़ *पूछो*
क्यों रब है खफ़ा, पूछो
क्या कर दी ख़ता, पूछो।
खोकर रब्त क्या पाया
क्यो गम है सज़ा, पूछो।
शोर दबा, किया ज़ख्मी
क्यों बदली फ़िज़ा, पूछो।
क़त्ल किया, अजा रोई
क्यों दिखती क़ज़ा, पूछो।
खुल्द बसे, अना टूटे
है 'निधि' भी रज़ा, पूछो।
-निधि सहगल 'विदिता'
🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃🌺🍃
विज्ञात छंद आधारित खूबसूरत ग़ज़लें .... प्रथम सृजन की सभी को ढेर सारी बधाई 💐💐💐💐
ReplyDelete