रमेश छंद
■ रमेश छंद का शिल्प विधान ■
वार्णिक छंद है जिसकी मापनी और गण निम्न प्रकार से रहेंगे यह दो पंक्ति और चार चरण का छंद है जिसमें 6,8 वर्ण पर यति रहेगी। सम चरण के तुकांत समान्त रहेंगे इस छंद में 11,14 मात्राओं का निर्धारण 6, 8 वर्णों में है किसी भी गुरु को लघु लिखने की छूट है इस छंद में लघु का स्थान सुनिश्चित है। लघु जहाँ है वहीं पर स्पष्ट आना चाहिए। मापनी का वाचिक रूप मान्य होगा।
122 222
122 122 22
यगण मगण
यगण यगण गुरु गुरु (गा गा)
उदाहरण : -
बुलाके देखो तो, हमारे प्रभो आयेंगे
मिलेंगे भोले जी, उन्हें जो इन्हें ध्याएँगे।।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
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*कुब्जा वाक*
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१.
हरो पीड़ा मोहन, करो आस हिय की पूरी।
हरो बाधा मेरी, बनाओ न ऐसे दूरी।।
२.
तुम्ही मेरे पालक, तुम्ही मित्र मन के प्यारे।
भरो खुशियां जीवन, हरो त्राण मेरे सारे।।
३.
बनाकर अब अपना, बनो मीत हे अभिमानी।
उठाकर संभालो, धरो ध्यान मैं अज्ञानी।।
४.
हजारों हैं कमियाॅं, मुझे छोड़के मत जाना।
दयाकर कुब्जा पर, यहीं भोग आकर खाना।।
५.
अभागन थी मैं तो, सुता थी मरी फिर मेरी।
बनाओ अब सुंदर, लगाओ नहीं अब देरी।।
*परमजीत सिंह कोविद*
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*भोर*
बुलाती हैं काली, सुहानी घटाएँ प्यारी।
खुशी से है झूमी, मयूरी रिझाती न्यारी।।
गुलाबों की डाली, नया गीत जैसे गाये।
पपीहा की बोली, धरा का जिया हर्षाये।।
नई आशा देती, उठी भोर जैसे योगी।
मिटाती कष्टों को, कहे क्यों बने हो भोगी।।
सुनाते है गाथा, नदी ताल पर्वत उपवन।
सुगंधित करते है, व्यथा से भरा हर तन मन।।
नीतू ठाकुर 'विदुषी'
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आँधी
चली ऐसी आँधी, हिली नींव श्रद्धा वाली ।
कली टूटी कोई, रहा देखता ही माली ।।
धरा में है व्यापी, बुराई महामारी सी ।
न कोई विश्वासी, लगे सत्यता भारी सी ।।
बिछाए हैं काँटे, नहीं फूल से है यारी ।
समाई है कुंठा, मरी भावनाएँ सारी ।।
न टूटा है झूठा, सदा सत्य ही क्यों हारा ।
मिले कोई ऐसा, बने जो सहारा प्यारा ।।
घटाएँ काली सी, दुखों की घिरी है ऐसे ।
डराते कष्टों से, मिले मुक्ति बोलो कैसे ।।
*इन्द्राणी साहू"साँची"*
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
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पुरवा
चली पुरवा ठंडी,सुहानी घटा है छाई ।
पड़ी बूँदें पहली,सुनाती पवन है आई।।
२.
नदी बहकी बहकी,बहे झूमती सी जाए।
झरे निर्झर मोती,गिरे पर्वतों से भाए।
३.
पपीहा भी बोले ,दिखे मोर नाचे गाए।
धरा होती हर्षित,खिले फूल जो मुस्काए।
४.
सुनो कान्हा विनती,हरो पीर सबकी अब की।
बने रोगी सारे,करो आस पूरी कब की।।
५.
लुभाते हो मन को,दिखाते सदा ही सपने।
जरा सा हो दर्शन,बनो तो कभी तुम अपने।।
अभिलाषा चौहान 'सुज्ञ'
बहुत सुंदर उदाहरण👌👌👌👌👌👌🌹🌹🥀👌👌👌
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteआभार 🙏💐
उत्तम लेखनी से उत्कृष्ट सृजन 👌👌👌
ReplyDeleteउत्तमोत्तम उदाहरण सभी को हार्दिक बधाइयाँ 💐💐💐
वाह! बहुत सुंदर सभी को हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteबहा दो रस गंगा, कलम से सरस मधुरिम सी।
बहेगा फिर झरना, झड़ी चौमास रिमझिम सी।।१
सरसती अनुरागी, हृदय में अचल रस धारा।
लगा है मेला सा, जगा नेह चमका तारा।।२
वाह वाह क्या बात है एक से बढ़कर एक बहुत सुदंर बहुत बधाई🌹🌹🙏🙏🙏👌👌👌
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