■ सुशीला छंद का शिल्प विधान ■
वार्णिक छंद है जिसकी मापनी और गण निम्न प्रकार से रहेंगे यह दो पंक्ति और चार चरण का छंद है जिसमें 6,8 वर्ण पर यति रहेगी। सम चरण के तुकांत समान्त रहेंगे इस छंद में 11,14 मात्राओं का निर्धारण 6, 8 वर्णों में है किसी भी गुरु को लघु लिखने की छूट है इस छंद में लघु का स्थान सुनिश्चित है। लघु जहाँ है वहीं पर स्पष्ट आना चाहिए। मापनी का वाचिक रूप मान्य होगा।
122 222, 122 212 22
यगण मगण, यगण रगण गुरु गुरु (गा गा)
उदाहरण:-
हमारे आने से, जहाँ पे हर्ष छाये हैं।
बड़े वो मीठे जो, क्षणों ने गीत गाये हैं।।
घटाएं गाती हैं, जहाँ पे राग प्यारे से।
दिखाती बातों में, निभाती नेह न्यारे से।।
घरों की रोती हैं, वही प्राचीन सी भीतें।
सदा से ही देखी, यहाँ पे टूटती रीतें।।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
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*करो कुछ ऐसा*
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मही का राही हूॅं, मुझे तुम भूल मत जाना।
सुरों का रागी मैं, मुझे यूॅं झूमकर गाना।।
सुगंधित आच्छादन, इतर से बाग महकाना।
हॅंसी औषधि प्यारे,हृदय को खोल मुस्काना।।
दिखाकर सपने यूॅं, कहीं तुम छोड़ मत जाना।
बहा कर बरसातें, शहद सा नेह बरसाना।।
हमें दो सौगातें, जलाशय ताल भर जाए।
जली है दोपहरी, समय का सूर्य घबराए।।
सुना दो धुन मीठी, सुता का प्रेम हर्षाए।
पिला मद ऑंखों से, जिया दरवेश भटकाए।।
*परमजीत सिंह कोविद*
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सुशीला छंद
घटाओं से पूछो, व्यथाएँ क्यों सुनाती हैं।
जगाती है यादें, दृगों को क्यों रुलाती हैं।।
बजाए मीठी सी, धुनों की बाँसुरी प्यारी।
धरा झूमें नाचे, सजाये सृष्टि को सारी।।
प्रभाती गाती सी, उठाती भोर है जैसे।
उगाती है संध्या, खुशी के पुष्प को वैसे।।
सुरों सी हैं साँसे, कभी दौड़े कभी रूठे।
दिखाती आँखों को, लुभाते स्वप्न ये झूठे।।
नीतू ठाकुर 'विदुषी'
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सुशीला छंद
१.
खडे़ लेकल पत्थर, मिले जब भीड़ में अपने।
भरोसे के ईटें, हृदय से तोड़ती सपने।।
२.
हवा बनकर रिश्ते, दिशा यूँ देखती माने।
रुकी साँसे चल कर, उसे अब कौन पहचाने।।
३.
अकेले ही चलना, नहीं पथ भीड़ में होता।
करे जो जन आलस, वही फिर दौड़ता रोता।।
४.
सिखाता हैं जीवन, कभी हँसना कभी रोना।
मिले मंजिल दृढ़ से, उपल हर मील का होना।।
चमेली कुर्रे 'सुवासिता'
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सुशीला छन्द
भरोसा तेरा है,इसे मत टूटने देना।
तुझे दिल दे डाला, रखो मुझ पर प्रभू नैना।।
लगन लागी मन है,इसे मत कम कभी करना।।
हुई कोई भूलें, हृदय अपने तु मत धरना।।
भरी राहें काॅंटों, इसे आ दूर कर देना।
करूं जीवन अर्पण, सुता का मान रख लेना।।
दिये दिन जो तूने, उसे सुख से बिता मेरे।
तुझे सौंपी डोरी, न छूटे हाथ से तेरे।।
हेमा जोशी "स्वाति"
लोहाघाट।
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