आ. गुरुवर संजय कौशिक विज्ञात जी,
के मार्गदर्शन में परमजीत सिंह 'कोविद' जी द्वारा आविष्कृत-नवीन छंद-
उपजाति कोविद सवैया
विधान- २२ वर्ण
यति ११,११ वर्ण पर
२११ २२२ २११ २२,
२११ २२२ ११२ २२
वाचिक रूप मान्य होगा
तीर्थ समझ चित्तौड़
पारस हल्दीघाटी हर मँगरी,
वीर प्रसूता मात यही माटी।
भारत अकबर से तंग हुआ था,
कायर मुगलों ने यह भू चाटी।
दुर्ग बड़े मेवाड़ी गिरि मँगरे,
शत्रु हरा कर नाक जहाँ काटी।
वंश महाराणा का सम दिनकर,
तीर्थ समझ चित्तौड़,धरा,घाटी।
वीर प्रतापी बप्पा कुल राणा,
युद्ध सनेही धीर नृपति सारे।
वीर हुए गौरा बादल से भट,
शत्रु हजारों रण लड़ते मारे।
युद्ध लड़े कुम्भा ने कितने ही,
धीर सजग रण वीर नहीं हारे।
बाबर से साँगा ने रण ठाना,
चेतक-राणा युद्ध लड़े भारे।
*बाबू लाल शर्मा,बौहरा,'विज्ञ'*
*सिकन्दरा, दौसा, राजस्थान*
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