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~~~~~~~~~~~~~_बाबूलालशर्मा,विज्ञ_
श्री संजय कौशिक विज्ञातजी प्रदत्त-
. 🌼 *पूजा छंद* 🌼
मापनी- १२२ १२२ २२, २२१ २२२
मापनी का वाचिक रूप मान्य होगा
.🦢 *कन्हैया तुम्ही लीलाधर* 🦢
बजाते मुरलिया कान्हा, राधा बुलाने को।
चली राधिका गोरी भी, हरि को रिँझाने को।
परस्पर मनो भावों से, मन प्रीति पलती है।
युगों से यही मानस में, शुभ रीति चलती है।
करे पूतना का वध वे, हरि कृष्ण बालक थे।
उठाए सहज वे पर्वत, जन कृष्ण पालक थे।
कहानी भ्रमर ऊधो की, माया कन्हाई की।
सगुण निर्गुणी बाते सब, बात दृढ़ताई की।
रचा कर महाभारत रण, हरि सारथी बनते।
सुना कर गहन गीता तब, भ्रम पार्थ का हरते।
पितामह सहित सब योद्धा, रण बीच मरवाए।
सखी द्रोपदी पांडव सुत, तब राज्य दिलवाए।
कन्हैया तुम्ही लीलाधर, जग को नचाते हो।
कहीं नाश कर देते हो, फिर आस जगाते हो।
बची हैं सुखद आशाएँ, विश्वास प्रभु तुम से।
सुदर्शन लिए आजाओ,जग को बचा तम से।
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....✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा,विज्ञ
सिकन्दरा, दौसा, राजस्थान
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दूसरी रचना
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~~~~~~~~~~~~_बाबूलालशर्मा,विज्ञ_
श्री संजय कौशिक विज्ञातजी प्रदत्त-
. *पूजा छंद*
मापनी- १२२ १२२ २२, २२१ २२२
वर्णिक-मापनी का वाचिक रूप मान्य है
. 🦚 *घर द्वार* 🦚
रहें सर्वदा प्रिय साथी, हम तुम सहारे बन।
करें कामना दोनों हम, अम्बर सितारे मन।
बहेगी सरित पावनतम, उजले हिमालय से।
करें वंदना दोनों मिल, मन के शिवालय से।
हमारी सतत सेवा से, घर द्वार मन्दिर हो।
रहेंगे सुजन बन अपने, मनभाव सुन्दर हो।
सनेही पिता माता को, भगवान मानें हम।
करें आरती उनकी तो, मन बात जाने हम।
सजाएँ सपन यादों के, सब पूर्ण भी करने।
रखे जो रहन सपने थे, फिर कर्ज वे भरने।
सुता को सहेजेंगे मिल, बहु बेटियाँ माने।
पराए सदन जो रमती, मन भाव पहचाने।
निभे मित्रता मन से तो, मन छंद नव रचने।
सुनाएँ सुगम सुर न्यारे, लय तालमय बजने।
चलेगी गृहस्थी गाड़ी, नव गीत रच कर मन।
बनेगी धरा सुखकारी, मनमीत मधुकर जन।
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....✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा,विज्ञ
सिकंदरा, दौसा, राजस्थान
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बहुत ही सुंदर रचना 👌👌👌
ReplyDeleteनए छंद की हार्दिक शुभकामनाएं आदरणीय 💐💐💐
बहुत सुंदर रचना आदरणीय 👌👌
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