6 विज्ञात विरंचि छंद
शिल्प विधान -
अर्द्धसम मात्रिक छंद की शृंखला में विज्ञात विरंचि छंद के चार चरण होते हैं। विषम चरण अर्थात प्रथम चरण तथा तृतीय चरण में मात्रा भार 17 रहता है और पंद्रहवीं मात्रा लघु अनिवार्य होती है। जबकि सम चरण द्वितीय तथा चतुर्थ चरण में मात्रा भार 11 रहता है अंत गाल अनिवार्य लिखना होता है।
इसका तुकांत विषम चरण में ही समान रहता है। यह इस छंद की विशेष सावधानी कही जाती है।
यदि इस छंद के शिल्प विधान को वर्णिक दृष्टिकोण से समझना है तो यह स्पष्ट वाचिक मात्रा भार और शुद्ध वर्णिक छंद के रूप में भी मान्य रहेगा। विषम चरण समान तुक होना अनिवार्य है।
जगण यगण तथा तगण से प्रारम्भ वर्जित रहेगा। ऐसा करने से ही लयात्मकता आकर्षक होगी।
22 22 22 212, 22 22 21
या
22 22 22 212, 22 22 21
उदाहरण देखते हैं ...
1
चल चुलकाना खाटू धाम पे, ले चल मुझको आज।
लगजा श्याम दर्श के काम पे, मिल जाएँ बस श्याम।।
2
महाकाल की अद्भुत चाल है, चले निराली चाल।
ये तो कालों के भी काल है, अटल मृत्यु कब टले।
@डॉ. संजय कौशिक 'विज्ञात'
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