5 विज्ञात व्याली छंद
शिल्प विधान -
सम मात्रिक छंद की शृंखला में विज्ञात व्याली छंद के 12 चरण होते हैं, 6 पंक्ति होती हैं।
प्रथम पंक्ति के दो चरण 17,11 द्वितीय पंक्ति के दोनों चरण 17,11 इस प्रकार से मात्रा भार को ध्यान में रखते हुए लिखे जाते हैं। इसमें पहले चार चरण में मात्रा भार शिल्प विधान विभव विज्ञात छंद के समान ही रहता है।
तृतीय पंक्ति से - इसका प्रथम चरण विभव विज्ञात छंद का अंतिम चरण ज्यों का त्यों दोहराया जाता है। जिससे आगे का शिल्प विधान में प्रथम पंक्ति के दो चरण 11,17 द्वितीय पंक्ति के दोनों चरण 11,17 इस प्रकार से मात्रा भार को ध्यान में रखते हुए चार चरण लिखे जाते हैं जो विज्ञात वैजयंती छंद के समान लिखे जाते हैं। इस प्रकार 8 चरण पूरे होने के पश्चात अंतिम चार चरण के शिल्प विधान में विज्ञात वैजयंती छंद पुनः दोहराया जाता है। अंतिम शब्द चौकल के रूप में वही शब्द होगा जिस चौकल शब्द से छंद लिखना प्रारम्भ किया गया था। इतनी सावधानी अवश्य रखनी होगी कि जिस शब्द से छंद प्रारम्भ हुआ है वही शब्द अंत में आये। अतः यह छंद चौकल शब्द से प्रारम्भ करना अनिवार्य है।
यदि इस छंद के शिल्प विधान को वर्णिक दृष्टिकोण से समझना है तो यह स्पष्ट वाचिक मात्रा भार और शुद्ध वर्णिक छंद के रूप में भी मान्य रहेगा।
जगण यगण तथा तगण से प्रारम्भ पहले चार चरण में वर्जित रहेगा। जबकि षष्ठम, अष्टम, दशम तथा द्वादश चरण में यगण से प्रारम्भ होने से लयात्मकता और अधिक आकर्षक होगी।
22 22 22 212, 22 22 21
22 22 22 212, 22 22 21
22 22 21, 122 22 22 22
22 22 21, 122 22 22 22
22 22 21, 122 22 22 22
या
22 22 21, 212 22 22 22
उदाहरण देखते हैं ...
1
अपना मन रमता जोगी बना, और रमा ले गात।
शिव भोले में जो हो भावना, तभी बने हर बात।
तभी बने हर बात, लगन भी यूँ जब सच्ची लागे।
जागे नवधा भक्ति, शिवा शिव फिर थामेंगे आगे।
धार कण्ठ रुद्राक्ष, निरंतर शिव शिव को तू जपना।
जपता जा नित मंत्र, लगाले ध्यान चरण में अपना।
@डॉ संजय कौशिक 'विज्ञात'
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